SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 166
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५२ अध्यात्म के परिपार्श्व में चंदनबाला के हाथ में सौंपा। उस समय ३६००० साध्वियां थीं और एक लाख नव्वे हजार श्रावक थे, तीन लाख अट्ठारह हजार श्राविकाएं थीं। उनके संघ में चौदह हजार साधु थे, जिनका नेतृत्व इन्द्रभूति गौतम करते थे। . महावीर ने नारी-जागृति को नया मोड़ दिया। उस समय क्षत्रिय कन्या, राज कन्या, ब्राह्मण कन्या सभी संघ में शामिल हो गईं। उनके युग की महान् धर्मनिष्ठ नारियों में मृगावती, चेलना, भद्रा, नन्दा, रेवती, पुष्पा, अग्निमित्रा आदि उल्लेखनीय हैं । यदि हम आदिनाथ ऋषभदेव के समय से दष्टि डालें तो मालम पड़ेगा उनके समय भी चतुर्विध संघ था। नारियां दीक्षा ग्रहण करती थीं। ब्राह्मी और सुन्दरी तीन लाख साध्वियों का नेतृत्व करती थीं। तीर्थंकर मल्लिनाथ के समय बन्धुमती ने ५५ हजार साध्वियों का नेतृत्व सम्भाल रखा था। तीर्थंकर अरिष्टनेमि के समय में दक्षिणी ने ४८ हजार साध्वियों को अपने संघ में शामिल किया था और २३ वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के समय में पुष्पचूला ३८ हजार साध्वियों का नेतृत्व सम्भाले थी। आज हम महावीर के नारी-जागरण के चेतना के फूलों को महकता हुआ देख सकते हैं। __ महावीर ने स्त्री-पुरुष को दैहिक सम्बन्ध से ऊपर उठाकर, सांसारिक अभिलाषाओं तथा काम-वासना से ऊपर करके धार्मिक स्तर पर जीने की प्रेरणा दी। उन्होंने उस पुरुष को 'सत्पुरुष' का अभिधान दिया जो गृहस्थाश्रम में पत्नी का मान-सम्मान करता है और शीलवती पत्नी की सुख-सुविधा का पूरा ध्यान रखता है । महावीर के समय विधवा नारी की स्थिति बड़ी दयनीय थी, उन्होंने उनके प्रति भी पूर्ण संवेदना व्यक्त की। अब वह पहले की भांति सिर नहीं मुड़ाती थी। महावीर के समय में सती प्रथा प्रचलित थी। यह बहुत प्राचीन प्रथा थी। बाल्मीकि रामायण में इसका उल्लेख मिलता है। आज भी इसकी घटनाएं इधर-उधर देखने को मिलती हैं। १९८८ में देवराला ग्राम (राजस्थान) में घटी सती की घटना ने सारे देश की चेतना को हिला दिया और फिर केन्द्रीय सरकार को सती प्रथा विरुद्ध कानून पास करना पड़ा। महावीर के सद्वचनों के प्रभाव से यह कुप्रथा हजारों साल पूर्व समाप्त कर दी गई थी। महावीर के धर्म-उपदेशों से नारी की दासता का अन्त हुआ, उसे समाज में मान प्रतिष्ठा मिली। सती प्रथा बन्द हो गई। नारी विधवा रूप में समाज द्वारा सम्मानित हुई, उसे पति की संपत्ति का अधिकार मिला। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003145
Book TitleAdhyatma ke Pariparshwa me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNizamuddin
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy