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________________ नारी उत्थान के प्रति महावीर की संवेदना १५१ समान हो, शय्या पर पति के लिए रम्भा की तरह हो, धर्मानुकूल आचरण करने वाली हो, और क्षमाशील ऐसी हो जैसी पृथ्वी । ऐसी सन्नारी घर वालों का कुल का उद्धार करने वाली होती है । 'माता' शब्द निर्माणवाची धातु से बना है । माता निर्मात्री होती है और जन्म देने के कारण 'जननी' है । स्त्री ही तीर्थंकरों को, महापुरुषों को जन्म देने के कारण पूज्य है । स्त्रीणां शतानि शतशो जनयन्ति पुत्रान्, नान्या सुतं त्वदुपमं जननी प्रसूता । सर्वा दिशो दधति भानि, सहस्ररश्मिं, प्राच्येव दिग्जनयति स्फुरदंशु जालम् ॥ सौ-सौ माताएं सौ-सौ पुत्रों को जन्म देती हैं, किन्तु क्या कोई माता तुम जैसा ( वर्धमान महावीर ) पुत्र अब तक जन्म दे पायी है ? सत्य है नक्षत्रों को सारी दिशाएं धारण करती हैं लेकिन दैदीप्यमान किरणों से पूर्ण सूर्य की जननी तो पूर्व दिशा ही है। माता त्रिशला ने महावीर स्वामी को प्रसूत कर स्त्रियों में अपना नाम सर्वोपरि कर लिया । महावीर के समय नारी जाति को सामान्यतः उपभोग्या माना जाता था, उसका क्रय-विक्रय होता था, वह दासी बनाई जाती थी । नारी का स्वतंत्र होना बुरा समझा जाता था । जिस समय महावीर का आविर्भाव हुआ, वह समय नारी - परतन्त्रता का समय था, उसके पतन का समय था । उसका स्वतन्त्र व्यक्तित्व न था । वह पुरुष के पराधीन थी - " अस्वतंत्र स्त्री, पुरुष प्रधाना" । वह वेश्या, शूद्रा समभी जाती थी । महावीर ने नारी की खोई प्रतिष्ठा को बहाल किया । उसे समाज में एक गौरवान्वित स्थान दिलाया। उसकी प्रतिष्ठा को लौटाया और उसे धर्म की सहायिका बनाया- 'धम्म सहाया ।' उन्होंने नारी को धर्म सभा, धार्मिक पर्व, समवसरण में सब जगह जाने की अनुमति दी । वह भी अपनी शंका का समाधान कर सकती थी, वह भी अपनी तार्किक शक्ति का उपयोग कर सकती थी । इस प्रकार उन्होंने नारी वर्ग का पुनरुत्थान किया और उसको घर और बाहर पूर्ण मान-सम्मान दिलाया । उन्होंने पति-पत्नी के लिए भी ब्रह्मचर्य का एक विशिष्ट विधान रखा, पति-पत्नी को पृथक् शय्या के साथ, पृथक् कमरे में सोना चाहिए । इस युग में महात्मा गांधी ने ( अपने आयु के मध्य चरण में) इसी प्रकार के ब्रह्मचर्य का अनुपालन किया था । महावीर ने नारी को दीक्षा देकर उसके अभ्युदय के लिए नूतन क्षितिजों को उद्घाटित किया । यह कदम बड़ा ही क्रान्तिकारी था, वह लोकनायक थे, जिधर उनके पग पड़ते उधर ही हजारों लोग चल पड़ते थे । उन्होंने सर्वप्रथम चंदनबाला को दीक्षित किया। साध्वी संघ का नेतृत्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003145
Book TitleAdhyatma ke Pariparshwa me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNizamuddin
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
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