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नारी-उत्थान के प्रति महावीर की संवेदना
समर्पण लो सेवा का सार,
सजल संसृति का यह पतवार । आज से यह जीवन उत्सर्ग,
इसी पद तल में विगत विकार । दया, माया, ममता लो आज,
मधुरिमा लो, अगाध विश्वास । हमारा हृदय रत्न निधि स्वच्छ,
तुम्हारे लिए खुला है पास । X नारी ! तुम केवल श्रद्धा हो,
विश्वास रजत नग पग तल में । पीयूष स्रोत सी बहा करो, __ जीवन के सुन्दर समतल में ।
(कामायनी) वस्तुतः समाज की स्थिति', उसकी धुरी नारी है और पुरुष में पौरुष है वह वह उसकी 'गति' है। 'स्थिति' और 'गति' दोनों के सन्तुलन की समाज की प्रगति के लिए अपेक्षा रहती है। भारतीय धर्म और संस्कृति में नारी की महिमा-गरिमा की चर्चा काफी की गई है। 'महाभारत' (१३।४६।५९-६१)में कहा गया है कि जहां स्त्री की पूजा की जाती है, उसका आदर-सत्कार किया जाता है, वहां देवता निवास करते हैं, जहां उसे आदर नहीं दिया जाता, वहां धार्मिक क्रियाएं निष्फल हो जाती हैं । घर तो गृहिणी से है, गृहिणी नहीं तो घर जंगल है।
सीता, त्रिशला, चंदना, जयप्रभा आदि नारियां हमारी संस्कृति की अकंप वृत्तिकाएं हैं । वाल्मीकि ने सीता को स्त्रियों में उत्तम माना है'नारीणामुत्तमा वधूः ।' नीतिकार नारी में छः गुणों का समावेश देखता
कार्येषु मंत्री वचनेषु दासी, भोज्येषु माता शयनेषु रम्भा ।
धर्मानुकूला क्षमया धरित्री, षड्भिर्गुणैः स्त्रीकुलतारिणी स्यात् ॥
नारी को पति के कार्यों में सलाह-मशवरा देना चाहिए। वाणी में दासी के समान मृदु-भाषिणी हो, पति को भोजन कराते समय माता के
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