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महावीर की लोकतांत्रिक दृष्टि
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सन्निहित है । आज का युग मताग्रह का नहीं, वैचारिक सहिष्णुता एवं उदारता का है, संकीर्णता का नहीं विशाल-हृदयता का है और यह विशाल हृदयता या उदारता अनेकांतवाद का मूल है।
प्रजातन्त्र में लोकव्यवहृत भाषा को महत्त्व दिया जाता है। किसी एक सीमित विशिष्ट वर्ग या सम्प्रदाय की भाषा को बहसंख्यक भाषा-भाषी स्वीकार नहीं करेंगे। संस्कृत में उपदेश या भाषण यदि कोई देने लगे तो उससे चंद मुट्ठी भर लोगों को ही लाभ मिल सकता है। महावीर ने अपने उपदेशों को पंडितों की भाषा में व्यक्त नहीं किया वरन लोकभाषा अर्धमागधी में व्यक्त किया तभी उनका प्रचार-प्रसार अधिक हुआ और अधिकाधिक लोग उनसे लाभान्वित हुए। जहां कहीं भी प्रजातन्त्र है वहां का शासन-कार्य बहुसंख्यक लोगों की भाषा में ही चलता है। ढाई हजार वर्ष पूर्व महावीर ने भाषा की समस्या का प्रजातांत्रिक अनुकरणीय निदान प्रस्तुत कर दिया था।
स्त्रियों को दीक्षा देकर उन्होंने एक समानता का प्रजातांत्रिक आदर्श पेश किया था, उनके शोषण व परिग्रह को नष्ट कर बहुमान और आदर प्रदान किया था । शोषित वर्ग को समाज में समान अधिकार दिलाए, स्वामीसेवक के, शोषक-शोषित के भेदभाव को नष्ट किया, अपरिग्रह के सिद्धान्त द्वारा आर्थिक समानता का वह आदर्श प्रस्तुत किया जो सभी प्रजातांत्रिक देशों में समाजवाद के नाम से अभिहित है । महावीर की विचारधारा प्रजातंत्र की बहमुखी विशेषताओं का अनुपम और सर्वहितकारी संगम है।
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