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________________ भगवान महावीर और विश्व - शांति भगवान महावीर आत्मदर्शी और आत्मजयी थे, क्षमावीर और धैर्यवान थे, समदर्शी और सहिष्णु थे, सत्य के प्रेमी थे, करुणा की मूर्ति थे । उनके समवसरण में सभी धर्मों, मतों, सम्प्रदायों के लोग एक साथ उठते-बैठते थे, प्रवचनों की अमृतवर्षा से अपने शुष्क हृदय को सिक्त करते थे, अपनी कठोर क्रूर, मन की भूमि को कोमल और मृदु बनाते थे । उन्होंने लोगों को समझाया कि कर्म से व्यक्ति ब्राह्मण होता है, कर्म से क्षत्रिय होता है, कर्म से वैश्य या शुद्र होता है, जन्म से कोई ब्राह्मण या शूद्र नहीं होता, जन्म से कोई बड़ा या छोटा नहीं होता । आज सारा समाज धर्म और सम्प्रदाय को लेकर अशांत है, हिंसक बना हुआ है । विश्व के मानचित्र को देखें तो वहां भी वर्गसंघर्ष है, विकसित और विकासशील देशों में रस्साकशी है । विषमता बढ़ती जा रही है । मनुष्य न्यूट्रोन बम जैसे भयानक / सर्वनाशक हथियार बना रहा है । वह स्वयं अपनी जाति के सर्वनाश पर तुला है, साथ ही समस्त प्राणिजगत् को भी अपने साथ नष्ट करना चाहता है । मनुष्य का मनुष्य की दृष्टि में कोई मूल्य नहीं, वह जब चाहे उसके प्राण ले सकता है । कैसा भयानक स्थिति है ? भगवान् महावीर ने हमें समता का आदर्श सिखाया । यह समता का आदर्श आज के विषमता और वर्ग संघर्ष की अग्नि में धू-धू करके जलने वाले संसार को बचाने में समर्थ है, यह शीतल जल का काम कर उस धधकती ज्वाला को बुझा सकता है । समता का अर्थ है न राग, न घृणा, न द्वेष, न आकर्षण, न विकर्षण, न मोह, न ममता । भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित पांच महाव्रत – एक ऐसे ज्योतिपुंज है जो विश्व को हिंसा के, विषमता के, अशांति के घोर अन्धकार से निकालने का मार्ग दर्शाते हैं । ये ही पांच महाव्रत सह-अस्तित्व की भावना को साकार करने में सफल हैं, ये ही मनुष्यता की, मानवता की रक्षा करने वाले हैं । " परस्परोग्रहोजीवानाम्" का संदेश हमें महावीर ने दिया, इस संदेश में सभी जीवों के साथ उपकार करने की — एक साथ जीवन-यापन करने की बात कही गई है, इसी को " सह-अस्तित्व" कहेंगे । जब अहिंसा की भावना सामने आती है, तब उसमें भी सह-अस्तित्व है । यदि संसार में सभी देश अहिंसा के महाणुव्रत का पालन करें तो वे आपस में सुखपूर्वक रहेंगे और दूसरों को भी सुखपूर्वक रहने देंगे। यहां मनमुटाव और शत्रुता का स्वतः विनाश हो जाएगा । सत्य की खोज में सह-अस्तित्व है, अस्तेय में सह-अस्तित्व है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003145
Book TitleAdhyatma ke Pariparshwa me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNizamuddin
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
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