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भगवान महावीर और विश्व-शान्ति
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यदि हम चोरी न करें, अनुचित साधनों से वस्तु ग्रहण न करें---सबके समान, सामने ग्रहण करें तो शान्ति स्थापित होगी ही। यही बात ब्रह्मचर्य में, संयम के व्यवहार में देखी जा सकती है। महावीर ने कहा ही नहीं, करके दिखाया। उन्होंने अपने चरित्र में इन महाव्रतों को ढाला है । आज का विश्व, मनुष्य घोर "सेक्सी" होता जा रहा है। संयम और मर्यादाएं उसके सामने कोई महत्त्व/मूल्य नहीं रखतीं। वह वासना और भोगविलास के लिए नारी का भोग करता है, उसे भोग की सामग्री के कुछ नहीं समझता । यह नारी का परिग्रह है। कामुकता और वासना की पंक से निकलने के लिए महावीर का ब्रह्मचर्य सहायक है। यह एक पवित्र, स्वच्छ निर्भर के समान है जो मनुष्य के समस्त वासना-पंक को धोकर साफ कर सकता है। ब्रह्मचर्य संयम सिखाता है। यहां अनुशासन, आत्मानुशासन का दीप मनुष्य के अन्दर प्रज्वलित होता है।
अनुशासन, आत्मसंयम भगवान महावीर का परम आदर्श था। संसार में अनुशासनहीनता कितनी है, यह हम सभी को मालूम है, हम कितने उन्मुक्त, स्वच्छंद, मर्यादाहीन हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। संसार में अशांति का एक बड़ा कारण यही अनुशासनहीनता है। भगवान महावीर ने हमें अनेकान्तवाद का आदर्श दिखाया जहां पक्षपात के लिए कोई गुंजाइश नहीं है । वस्तु का स्वभाव ही धर्म है, प्रत्येक वस्तु अनेक धर्मा होती है, अनेक गुण सम्पन्ना होती है । वस्तु के सभी गुणों को समझना चाहिए, उन्हें महत्त्व देना चाहिए । दुराग्रह त्याग कर दूसरों के तर्कों का, विचारों का आदर करना चाहिए, लेकिन हमें दूसरों के मतों को, विचारों को, भावना को ठेसें पहुंचाने में सुख मिलता है। यह हीन दृष्टि है, असमानता, विषमता, संघर्ष और कलह की जननी है, विश्व में अशान्ति का बीज इसी धरती पर जमता है।
अनेकान्तवाद द्वारा हम सह-अस्तित्व की, विश्व-शान्ति की, विश्व बंधुत्व की, सर्वधर्मसमभाव और सहिष्णुता की ओर अग्रसर होते हैं और पहुंचते हैं मानव-एकता के महान आदर्श की ओर "अनेक अन्ताः धर्माः यस्मिन स अनेकान्त" अर्थात् अनेक धर्मों के कारण प्रत्येक वस्तु अनेकान्त रूप में विद्यमान है । यह एक सापेक्ष सिद्धान्त है, यहां मताग्रह के लिए कोई जगह नहीं है। महावीर ने अनेकान्तवाद द्वारा व्यक्ति और समाज की भौतिक, व्यावहारिक, आर्थिक, सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान खोज निकाला । इस सिद्धान्त के द्वारा हम सहिष्णु बनते हैं, दूसरों के मतों/भावनाओं का आदर करते हैं, और जाहिर है फिर दूसरे भी हमारे मतों/भावनाओं का आदर करते हैं। यहां सभी प्रकार के विरोधों का उन्मूलन होता है। विश्व में अशान्ति है, संघर्ष है, हिंसा है और मालूम नहीं कब तृतीय
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