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________________ अहिंसा की परम्परा और महावीर भारत प्राग्वैदिक काल से अहिंसा का प्रचारक रहा है। वैदिक काल में यज्ञों का प्राबल्य था, पशुबलि को उनमें प्राथमिकता दी जाती थी परन्तु अहिंसा की लौ तब भी अकंप थी । जन-मानस अहिंसा प्रेमी था। उपनिषद्काल में वैराग्य को, इन्द्रिय-निग्रह को महत्व दिया गया। ब्राह्मण ग्रन्थों में दोनों धारणाएं प्राप्य हैं; सर्वे मेघ में सबको हनन किया जा सकता है, तथा किसी भी प्राणी की हिंसा न करो-"मा हिंस्यात् सर्वभूतानि ।" वैदिक ब्राह्मण ऐसे यज्ञ का समर्थक था जिसमें जीव-हिंसा हो, यह हिंसोन्मुख यज्ञ धर्म का अंग समझा जाता था । बुद्ध और महावीर के युग में अहिंसा धर्म का अधिक प्रचार किया जाने लगा। वैसे इस अहिंसा क्रांति का बीजारोपण काफी पहले हो गया था । बहुत पहले न जाकर शबरी-प्रसंग को देखिए । 'बाल्मीकि रामायण' तथा 'रामचरित मानस' की शबरी एक अविस्मरणीय नारी पात्र है। उसे रामस्वरूप का अनुभव हो गया था अतः मुक्ति भी मिल गई। श्रीराम कहते हैं भक्तौ संजातमात्रायां मत्तत्त्वानुभवस्तदा । ममानुभवसिद्धस्य मुक्तिस्तत्रैव जन्मनि ॥ अर्थात भक्ति के उत्पन्न होने मात्र से मेरे स्वरूप का अनुभव हो जाता है और जिसे मेरा अनुभव हो जाता है उसकी उसी जन्म में मुक्ति हो जाती है। शबरी भील-कन्या होकर भी संस्कारों से अहिंसा-प्रेमी थी। जब वह पशुबलि देखती तो आहत हो जाती, अधीर और अशांत हो जाती। और जिस समय उसके विवाह का सुखद अवसर आया तो उसने पशु-हिंसा से पीड़ित होकर विवाह-पूर्व ही घर-बार जोड़ दिया और आजीवन ब्रह्मचर्यव्रत की पथिक बनकर, भयानक मार्ग तय करते हुए पम्पासर पहुंच गई जहां मतंग ऋषि ने उसे शरण प्रदान की। अब इस युग के बाद आइए बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथ के युग पर । वह वासुदेव कृष्ण के चचेरे भाई थे । नेमिनाथ का विवाह जूनागढ़ के अधिपति उग्रसेन की कन्या राजुलमति से होना तय पाया था। उनकी बारात जूनागढ़ में जिस रास्ते से जा रही थी वहां एक स्थान पर पशु क्रन्दन सुनाई पड़ा । वहां अतिथियों के लिए मांस की व्यवस्था की गई थी। नेमिनाथ का रथ रुक गया और उनका हृदय स्वयं करुणा से चीत्कार कर उठा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003145
Book TitleAdhyatma ke Pariparshwa me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNizamuddin
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
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