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अध्यात्म के परिपार्श्व में
धुवेइ वा । अर्थात, प्रत्येक वस्तु में तीन गुण होते हैं—उत्पाद, व्यय और धन्य । उत्पन्न होना, क्षीण होना, स्थिर रहना, यही वस्तु तत्त्व है । इस त्रिपदी द्वारा महावीर ने उस समय के सर्वविद्याओं के पारगामी विद्वान् इन्द्रभूति गौतम के ज्ञान - अहंकार की दीवारें धराशायी कर दीं । इन्द्रभूति के पांच सौ शिष्य थे, वे सब इन्द्रभूति के साथ महावीर धर्म में दीक्षित हो गए । वही महावीर के गणधरों में प्रमुख हैं । महावीर के ११ गणधरों के नाम हैंइन्द्रभूति, अग्निभूति, वायुभूति, आर्य - व्यक्त, सुधर्मा, मंडित, मौर्यपुत्र, अकंपित, अचल भ्राता, मेतार्थ और प्रभास । महावीर ने वैशाली, कौशाम्बी, श्रावस्ती, राजगृह, चंपा, वाराणसी, मिथिला, कौशल, पांचाल आदि स्थानों में विहार करते हुए जनभाषा, अर्द्धमागधी में उपदेश दिए । अनेक राजामहाराजा, स्त्री-पुरुष उनके धर्मशासन में सम्मिलित हुए । उन्होंने चतुर्विध संघ की स्थापना की - साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका । ईसापूर्व ५२७ में महावीर पावापुरी (बिहार) में परिनिर्वाण को प्राप्त हुए ।
मोक्ष प्राप्ति का एक सूत्र
महावीर ने मोक्षमार्ग पर चलने का अधिकार प्रत्येक प्राणी को दिया है । उन्होंने संसार का कर्त्ता ईश्वर को नहीं माना। वह तो प्राणी में ही - मनुष्य में ही ईश्वरत्व की प्राप्ति संभव बताते थे, प्रत्येक मनुष्य कर्मक्षय कर परमात्मा बन सकता है । यहां पुरुषार्थ को, कर्मशीलता को अधिक महत्ता दी गयी है । व्यक्ति अपने कर्मों का स्वयं कर्त्ता है और अपने किए कर्मों का परिणाम भोगनेवाला भी वही है । वह कर्म - प्रयत्न करके स्वतन्त्र या बंधनमुक्त हो सकता है
महावीर ने कहा कि कर्मबन्धन से मुक्त होने पर प्रत्येक आत्मा परमात्मा बन सकता । उनका कर्मसिद्धांत नौ तत्त्वों पर आधारित हैजीव, अजीव, पुण्य, पाप, आश्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष |
पांच अणुव्रत
महावीर ने पांच अणुव्रतों के अनुपालन पर सर्वाधिक बल दिया । आज संसार में अशान्ति का कारण जहां परिग्रह और हिंसा है, वहां शारीरिक हिंसा और धन-संघर्ष या अर्थसंघर्ष से अधिक वैचारिक हिंसा संसार में अशान्ति का प्रमुख कारण है । वैसे तो महावीर के अणुव्रतों का मूलाधार 'संयम' है और संयम ही धर्म है- संयमी खलु धम्मो !
परन्तु हमारे व्यवहार में संयम और सहिष्णुता नहीं । महावीर ने इसके लिए हमें 'अनेकान्तवाद' का दर्शन दिया । अनेकान्तदृष्टि हमें सहिष्णु बनाती है, 'जीओ और जीने दो' या 'सह-अस्तित्व' का उदारभाव प्रदान करती है । महावीर ने मताग्रह छोड़ने और विचारों में समता तथा सहिष्णुता
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