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तीर्थंकरों की परम्परा और महावीर
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वासुपूज्यनाथ, विमलनाथ, अनन्तनाथ, धर्मनाथ, शान्तिनाथ, कुंथुनाथ, अरहनाथ, मल्लिनाथ, मुनिसुव्रतनाथ, नमिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर। तीर्थंकरों की विशेषताएं
___ तीर्थंकरों की कुछ विशेषताएं दृष्टव्य हैं-उनके शरीर में पसीना नहीं आता, उनका शरीर सुगन्धपूर्ण और रक्त दूध जैसा श्वेत होता है । शरीर रूपवान, निर्मल तथा १००८ लक्षणों से युक्त होता है। वे बलशाली, मितभाषी, हितकारी, प्रियवचन बोलनेवाले होते हैं। उनके शरीर को छाया नहीं पड़ती। वे सब विद्याओं के ज्ञाता होते हैं। उनके न नाखून बढ़ते हैं और न केश बढ़ते हैं । जब वे विहार करते हैं दिशाएं निर्मल, आकाश निरभ्र होते हैं । हवा में सुगन्ध घुल जाती है, पृथ्वी धन-धान्य से परिपूर्ण हो जाती है। प्रत्येक तीर्थंकर का अपना चैत्यवृक्ष और चिह्न होता है। २४ तीर्थंकरों के क्रमशः चैत्यवृक्ष ये हैं-वट, शक्तिपूर्ण-सप्तपर्ण, शाल, सरल, प्रियंगु, वट, शिरीष, प्रियंगु, मालूर, प्लक्ष, पीपल, तिंदुक, पाटला, जामुन, अश्वत्थपीपल, दधिपर्ण, नन्दि, पिलक्खू, आम्र, अशोक, चंपक, मौलश्री, वेतस, धव, शाल । तीर्थंकरों के चिह्न
तीर्थंकरों के चिह्न क्रमशः ये हैं-वृषभ, हाथी, अश्व, बन्दर, चकवा —क्रौंच, कमल, स्वस्तिक, चंद्रमा, मकर, श्रीवत्स, गेंडा, महिष, वराह, श्येन, वज्र, मृग, बकरा, नंद्यावर्त, कलश, कूर्म, नील कमल, शंख, सर्प, सिंह।
- तीर्थंकरों की सुदीर्घ परम्परा में प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ ऋषभदेव माने जाते हैं । वेदों-पुराणों में उनका नामोल्लेख मिलता है। ऋषभदेव का विशद चरितांकन श्रीमद्भागवत में प्राप्त है। शिव पुराण (४,४८) में शिव ने ऋषभ को अपना अवतार माना है--
इत्थंप्रभव ऋषभोऽवतारी हि शिवस्य मे सतां गतिर्दीनबंधुर्नवभः कथित रत्तव ।
भागवत में ऋषभदेव के एक सौ पुत्रों में से एक भरत के नाम पर ही इस देश का नाम 'भारतवर्ष' पड़ा बताया गया है
येषां खलु महायोगी भरतो ज्येष्ठः श्रेष्ठगुणश्चासीत् । येनेदं वर्ष भारतमिति व्यपदिशंति ॥
(भागवत, ५/४) प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव ने १३ जन्मों में तीर्थंकरत्व की साधना की थी। वह एक जन्म में जीवानन्द नामक वैद्य थे और अपनी चिकित्सा से एक कुष्ठ रोगी मुनि को स्वस्थ किया था तथा मुनि के निर्मल उपदेशों को
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