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अध्यात्म के परिपार्श्व में
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लो। उन पर सवारी करो जब वह अच्छी दशा में हों ? एक दूसरे स्थान पर कहा, "एक व्यभिचारिणी स्त्री को वख्श दिया- क्षमा कर दिया गया, वह एक कुत्ते के पास से गुजरी जो एक कुएं पर जवान निकाले हुए हांप रहा था, प्यास से मरणासन्न था । उसने अपना मोजा उतारा और अपने दुपट्टे से बांधकर कुएं से पानी निकालकर पिलाया, इस कारण उसे बख्श दिया गया ।" लेकिन एक बात में भारी मतभेद है; भगवान महावीर जहां किसी भी प्रकार की हिंसा को निद्य मानते थे वहां कुरान की शब्दावली में मोहम्मद साहब ने मानव को 'अशरफुल मखलूकात' यानी प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ मानकर उसी के लिए संसार की प्रत्येक वस्तु का उपयोग न्यायसंगत माना। यहां तक कि कुछेक पशु-पक्षियों का मांस खाना हलाल माना- - ( देखिये कुरान शरीफ सूरे हज ११, ३१, ३६), परन्तु मांसाहार को उन्होंने अनिवार्य घोषित नहीं किया, यह तो 'मन माने की बात है, स्वभाव और रुचि की बात है । अहिंसा के क्षेत्र में भ० महावीर विश्व के सभी धर्म प्रवर्तकों एवं महापुरुषों में विशेष स्थान रखते हैं ।
नारी- उद्धार
भगवान महावीर ने नारी की पतितावस्था को देखकर और युग की नाड़ी पर हाथ रखकर नारी को सच्चे अर्थों में अर्द्धांगिनी और सहधर्मिणी माना | 'धम्म सहाया' - वह धर्म की सहायिका मानी गई । जो कुछ समय पूर्व भोगविलास की सामग्री मानी जाती थी, गणिका, वेश्या, क्रीतदासी समभी जाती थी, अब वह समाज का एक सम्मानित अंग बन गई। यही नहीं महावीर ने उनको भिक्षुणी संघ में दीक्षित कर उसे शोचनीय अवस्था मे ऊपर उबारा । मोहम्मद साहब ने भी नारी - उद्धार में स्तुत्य कार्य किया । उन्होंने भी नारी के भोगविलास की वस्तु, कुलदासी, लोंडी या कनीज, वेश्या जैसे घृणित रूपों को समाज से उच्छिन्न किया और उसे समानता का अधिकार प्रदान किया वह समानता का अधिकार जिसके लिए आज डेढ़ हजार वर्ष बाद 'तथाकथित सर्वोन्नत देशों में नारियां सड़कों पर प्रदर्शन करती हैं, सभाएं आयोजित करती हैं। कुरान में कहा गया है - "यह तुम्हारे लिए न्यायोचित नहीं कि स्त्रियों को उनकी इच्छा के खिलाफ वरसे के तौर पर लो (कुरान ४, १९ ) । “मर्दों को उससे हिस्सा मिलेगा जो मां-बाप, परिजन छोड़ें (४, ७) ।" इस प्रकार स्त्रियों को पिता, पति की जायदाद का भागी करार दिया गया । विधवा के पुनर्विवाह को भी मोहम्मद साहब
ने उचित ठहराया | तलाक - सम्बन्ध विच्छेद की बात कुरान में आई है लेकिन यह भी कहा गया है कि "अल्लाह तलाक देने वालों समझता ।" यानी तलाक की इजाजत तो है लेकिन बिना
को अच्छा नहीं बात या जब जी
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