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महावीर और मोहम्मद
१२९ 'जकात' । प्रत्येक व्यक्ति को २३ प्रतिशत वार्षिक अपनी सम्पत्ति में से दीनदुखी, दरिद्र-अनाथ को दान देना होता है । यह एक प्रकार का राजदेय शुल्क (इनकम टैक्स) है। इस प्रकार मोहम्मद साहब ने भी अपरिग्रह का आदेश दिया है । आज हमारे देश में जो वस्तुओं के मूल्य बढ़ रहे हैं उसका एक मात्र कारण यही है कि हम हिंसा करते हैं, जुल्म करते हैं, झूठ बोलते हैं, चोरी करते हैं-वस्तुओं को चोरी-छिपे जमा करके रखते हैं और भगवान महावीर, पैगम्बर मोहम्मद के निर्दिष्ट, उपदिष्ट मार्ग का अनुवर्तन नहीं करते। अहिंसा दृष्टि
भगवान महावीर ने अपने पांच व्रतों में अहिंसा को सर्वप्रथम रखा है, अर्थात हिंसा-वृत्ति अनिष्ट का मूल है। अहिंसा का अर्थ केवल किसी का बध न करना ही नहीं; इस पर कुछ और अधिक व्यापकता से, गहनता से विचार करना होगा। अहिंसा से भगवान महावीर का तात्पर्य यह है कि किसी भी प्राणी को-जीवधारी को किसी भी प्रकार का कष्ट न दिया जाये, किसी पशु को दाना-चारा-पानी न देना, किसी मनुष्य को ऐसी बात कहना जिससे उसके हृदय को दुख पहुंचे, कष्ट पहुंचे। मोहम्मद साहब ने निरमजी हदीस' में एक स्थान पर फरमाया "अरहामू मन फिस्समा यरहामुकुम मन फिस्समा" अर्थात् तुम जमीन पर बसने वालों पर रहम (दया) करो, अल्लाह तुम पर रहम करेगा । उन्होंने प्रतिकार या बदले की भावना की निन्दा की
और कहा अगर कोई बुराई करे तो उसका बदला बुराई से मत दो, उसे माफ करो, क्षमा करो। उन्होंने युद्ध के मैदान में-'जंगे बरदर' में भी शत्रु का बुरा नहीं चाहा, शत्रु को अभिशाप नहीं दिया । मानो उन्हें शत्रु-मित्र इसी प्रकार समान थे जैसे भगवान महावीर को। यह माना कि मोहम्मद साहब ने कई-एक युद्धों में भाग लिया लेकिन किसी भी युद्ध में उन्होंने किसी का बध नहीं किया, किसी को आघात नहीं पहुंचाया। महावीर ने अन्यायी को दण्ड देने का आदेश दिया, राज्य में सुख शांति की सुव्यवस्था के लिए उसे उचित और वैध घोषित किया। यहां अहिंसा कायरता की भावना से अद्भूत नहीं, वह पराक्रमी, शक्तिशाली को ही शोभा देती है। गांधीजी ने भी प्रत्येक स्थिति में अहिंसा को ही महत्त्व नहीं दिया, कुछ विशेष स्थिति में हिंसा को भी स्वीकार्य माना है। ऐसी विशेष स्थिति की ओर संकेत करते हुए कुरान में कहा गया है "फमनितदा अलैकुम फातदू अलैहि"--अर्थात् जो कोई तुम पर जियादती करे, तुम भी उस पर जियादती करो (सूरे बकर) । पशु-पक्षी पर दया करने का उपदेश देते हुए मोहम्मद साहब ने एक हदीस में फरमाया "बेजवान जानवरों के मामले में तकवा (संयम) से काम
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