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________________ महावीर और मोहम्मद १२५ वो थे कत्लोगारत में चालाक ऐसे, दरिंदे हो जंगल के बेबाक जैसे । जो होती थी पैदा किसी घर में दुख्तर, तो खोफे शमातम से राह में मादर ! फिरे देखती जब भी शोहर के तेवर, कहीं जिन्दा गाड़ आती थी उसको जाकर । वो गोद ऐसी नफरत से करती थी खाली, जने सांप जैसे कोई जनने वाली । यह पैगम्बर मोहम्मद के प्रभावशाली व्यक्तित्व का ही परिणाम था कि ये जुआरी, शराबखोर, व्यभिचार, हिंसक मनुष्य भी यतीमों के विधवाओं के हमदर्द बने और कुकर्मों का परित्याग कर सच्चे अर्थों में मनुष्य बने, उनकी पाशविकता दूर हुई और मानवता आई । दोनों ही महात्माओं ने समाज के अपने ही लोगों के अत्याचार सहन किये । तपश्चर्या काल में महावीर जब कभी किसी ग्रामांचल की ओर आते तो लोग उनका ईंट-पत्थर से स्वागत करते, कभी उन पर हिंसक कुत्ते छोड़कर जख्मी करते, कभी उनके मार्ग को कांटों से भर देते, यहां तक कि समाधिस्थ अवस्था में भी उनको अनेकविध कष्ट पहुंचाए जाते । यही हाल ऐसा ही दुर्व्यवहार मोहम्मद साहब के साथ हुआ । मोहम्मद साहब अनपढ़ थे, अशिक्षित थे अतः उन्हें 'उम्मी' कहा जाता था, लेकिन सत्यवादी और कर्तव्यपरायण थे अत: उन्हें 'अमीन' ( सच्चा बोलने वाला) कहा जाता था । जब वह 'अमीन' मक्कानिकस्थ एक 'गारे हरा' हरा नामक गुफा में जाने लगा और वहां घण्टों एकान्त में बैठकर समाज की, मनुष्यों की पतितावस्था से, पापोन्मुखी दशा से चिंतित रहता, अपने परवरदिगार से दुआ करता कि इस कौम को पतन के गर्त में गिरने से, गुनाहों से बचाइये और बहुत समय तक यह सिलसिला चलता रहा तो एक दिन दैविक वाणी का उन्हें आभास हुआ और खुदा ने उन्हें अपना पैगम्बर पैगाम पहुंचाने वाला संदेश वाहक मनोनीत किया। फिर मोहम्मद साहब ने अपने नबी होने की— पैगम्बर होने की उद्घोषणा करते हुए एक खुदा की बंदगी का प्रचार करना आरम्भ किया । इस अप्रत्याशित, परमविरोधी बात को अरब जनता सुनने को तैयार न थी, कोई अपने सैकड़ों कुल देवताओं की मूर्तियों को तोड़ने-उनका परित्याग करने को तैयार नहीं था । फलत: मोहम्मद साहब की विद्रोहात्मक वाणी का लोगों ने घोर अत्याचारों के साथ विरोध किया । बच्चे उन पर ईंट, पत्थर फेंकते, स्त्रियां उन पर कूड़ा-कचरा डालती, कभी उनके रास्ते पर कांटे डाले जाते, कभी उन पर कुत्ते छोड़े जाते, कभी उन पर नमाज पढ़ते वक्त भारी वजन रखा जाता -क्या दुर्व्यवहार उनके लोगों ने उनके साथ नहीं किया ? इस प्रकार भगवान महावीर और पैगम्बर मोहम्मद की सद्वाणी का लोगों ने उन्हें कष्टप्रद यातनाएं देकर स्वागत किया । लेकिन दोनों सत्य पथ पर अडिग, अविचल रहे और अन्तत: अज्ञान पर ज्ञान की, अधर्म पर धर्म की विजयपताका फहराकर ही छोड़ी । , Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003145
Book TitleAdhyatma ke Pariparshwa me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNizamuddin
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
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