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अध्यात्म के परिपार्श्व में
का प्रसार था। दास प्रथा आम थी, यहां तक नारी का भी क्रय-विक्रय किया जाता था । चन्दना इसका ज्वलन्त दृष्टान्त है जिसे खुले बाजार बोली लगाकर बेचा गया। धार्मिक क्रियाओं में भी नारी को सम्मिलित होने के अधिकार से वंचित रखा गया था । हां वह भोग की सामग्री अवश्य समझी जाती थी, इसके अतिरिक्त समाज में उसे कोई आदरणीय स्थान प्राप्त नहीं था। निरीह नर, पशु का बलिदान, उनका आर्तनाद, स्त्रियों की करुणाप्यायित दशा, समाज में फैली अधर्म-व्यभिचार-विषमता की भावना से ही तो भगवान महावीर का अवतरण हुआ, जिसने घोर अत्याचारों, पापों, कुकर्मों की आग से तपती धरणी को प्रेम, करुणा, अहिंसा, समानता की शीतल-सुखद वर्षा से शीतल किया । उधर मोहम्मद साहब के युग के अरब पर दृष्टि डालिए तो वहां भी समाज में रक्तपात, हिंसा, व्यभिचार, पापपुंज, अधर्मता सभी कुछ वैसा ही था। नारी वहां भी भोग की सामग्री थी। लोंडी या कनीज के रूप में (नर दास के समान) उसका क्रय-विक्रय होता था, दास प्रथा का अधिक प्रचलन था। अकसर लड़की का पैदा होना महा बुरा समझा जाता था और उसे पैदा होते ही जिन्दा मार दिया जाता था या जमीन में दफन कर दिया जाता था। मक्का स्थित काबा शरीफ, जहां विश्व के लाखों मुसलमान प्रत्येक वर्ष एक दिन-एक साथ हज का फरीजा अदा करते हैं, उस समय ३६० बुतों-मूर्तियों से भरा पड़ा था। प्रत्येक कुल की वहां एक कुलमूर्ति या कुलदेवता था जिसकी पूजा की जाती थी। यही नहीं, जैसे महावीर के युग में नर-बलि दी जाती थी मोहम्मद साहब के युग में भी यह प्रथा थी, अरब की रीति के अनुसार एक बार कुरैश के एक नवयुवक की देवता को बलि दी जाने वाली थी, लेकिन जब उस युवक के आकर्षण यौवन पर मक्का वालों को तरस आया तो उन्होंने एक ज्योतिषविद फाल निकलवाया, जिसके द्वारा यह निश्चित किया गया कि इस युवक के स्थान पर एक सौ ऊंट कुर्बान किये जायें तो देवता प्रसन्न हो जायेगा। फिर ऐसा ही किया गया, देवता की खुशनूदी के लिए एक सौ ऊंट बलि किये गये और उस युवक को छोड़ दिया गया । जानते हैं वह युवक कौन था ? वह युवक मोहम्मद साहब के ही पिता अब्दुल्ला बिन अब्दुलमुत्तलिब थे और इस घटना के बाद अब्दुल्ला का विवाह सुशील युवती आमना से किया गया था। क्या कुकृत्य नहीं थे उस समय अरब-समाज में ? जुआ, शराब बहुत आम थे, युद्ध बहुधा मनोरंजन के लिए किये जाते थे। उर्द के प्रसिद्ध कवि मौलाना हाली ने तत्कालीन दशा का स्पष्ट चित्रांकन इस प्रकार किया है
चलन उनका जितना था सब वहशियाना, फसादों में कटता था उनका जमाना। हर एक लूट और मार में था यगाना, न था कोई कानून का ताजयाना ।
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