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________________ अध्यात्म के परिपार्श्व में याद करना । इसके बाद हाथ छोड़कर 'अल्लाहो अकबर' कहता हुआ व्यक्ति नीचे झुकता हुआ अपने दोनों हाथों को घुटनों पर रखता है, दृष्टि नीचे रहती है और कहता है “पाक, पवित्र है मेरा रब, महान ।" इसे 'रुकू' कहते हैं । इसके पश्चात् "अल्लाह उस व्यक्ति को सुनता है जो उसकी तारीफ करे" कहता हुआ नमाजी सीधा खड़ा होता है और फिर खड़े होकर कहता है " सब तारीफें अल्लाह के लिए हैं" । फिर "अल्लाहो अकबर" कहता हुआ 'सिजदा' करता है । सिजदा करते हुए दोनों हाथ जमीन पर फैलाकर कानों के पास रखें, कोहनी जमीन पर न टिके, माथा व नाक जमीन पर रखे हों और यहां नमाजी कहता है 'मैं अपने अल्लाह की महानता / पवित्रता का वर्णन करता हूं । तीन, पांच या सात बार इसी वाक्य को दोहराता है । 'रुकू' में भी इसी प्रकार 'मेरा अल्लाह पवित्र / महान् है" तीन, पांच या सात बार पढ़ा जाता है। सिजदा से उठते हुए तनिक पल भर बैठता है और फिर 'अल्लाह महान् है' कहता हुआ दोबारा सिजदा करता है । पहले सिजदे के बाद जब व्यक्ति बैठता है तो दोनों हाथ जाघों पर रखे होते हैं - अंगुलियां मिली हुई हाथ फैला हुआ, दाहिना पैर अंगुलियों के बल खड़ा रहता है, बायां पैर मोड़कर बैठते हैं । इस प्रकार नमाज की एक रकअत पूरी होती है । दो सिजदों के बीच में पलदो-पल बैठना 'कायदा' कहलाता है । फिर खड़े होकर इसी प्रकार दूसरी रकअत पूरी की जाती है । दूसरी या चौथी रकअत के बाद 'कायदा' में बैठकर अल्लाह का स्तुतिगान करते हैं । उस समय नजरें नीचे रहे फिर दुरूह वगैरह पढ़ने के बाद दाएं-बाएं और गर्दन फेरकर अलैकुम कहते हैं । अन्त में दोनों हाथ ऊपर उठाकर 'दुआ मांगते हैं । नमाज में जो पढ़ते हैं इतना धीरे से पढ़ते हैं कि कोई दूसरा पास में खड़ा / बैठा नमाजी भी न सुन सके। हां, इमाम साहब बुलन्द आवाज में कुरान पढ़ते हैं, 'अल्लाहो अकबर' आदि कहते हैं । अस्सलामअल्लाह से ११८ नमाज में प्रमुख बात एकाग्रचित्त होना है, ध्यान लगाना है । नमाज नहीं है । यहां कई पढ़ रहे हैं और मन यत्र-तत्र भटक रहा है तो वह नमाज आसनों का प्रयोग भी देखने को मिलता है । बौद्धदर्शन में ध्यान - आसन नहीं है, ध्यान और आसन का प्रयोग महावीर के यहां देखने को मिलता है । 'आसन ध्यान की ही एक पद्धति है । वृत्तियों पर नियंत्रण कैसे किया जाए ? कर्मों की निर्जरा कैसे की जाए ? इसका एक उपाय है आसन । इसके साथसाथ आसन से स्वास्थ्य भी सुदृढ़ होता है । जो व्यक्ति ध्यान करता है किन्तु आसन नहीं करता, वह हानियां भी उठाता है। ध्यान से पाचन तन्त्र गड़बड़ा जाता है, अग्नि मंद हो जाती है, इसलिए ध्यान के साथ आसन का होना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003145
Book TitleAdhyatma ke Pariparshwa me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNizamuddin
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
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