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________________ नमाज : आस्था और ध्यान (भलाई की तरफ आओ)। चौथे, नमाज पढ़ने से अल्लाह के कानूनों का ज्ञान प्राप्त हो जाता है । नमाज में कुरान पढ़ा जाता है, पांचों समय बार-बार पढ़ा जाता है । कानून का, विधि-विधान का परिज्ञान होगा तभी तो व्यक्ति उसका अनुपालन कर सकता है । व्यक्ति को यह जानना भी अत्यावश्यक है कि वह नमाज में क्या पढ़ रहा है ? - जब व्यक्ति नमाज पढ़ता है तो उसके वस्त्र पाक-साफ होने जरूरी हैं। नापाक वस्त्रों से नमाज नहीं हो सकती और न नमाज नापाकी की दशा में होती है-यानी यदि गुस्ल करना, स्नान करना अनिवार्य हो' और स्नान न किया हो तो नमाज नहीं हो सकती और पढ़नी भी नहीं चाहिए। नशे की अवस्था में भी नमाज पढ़ना जायज नहीं है। नमाज से पूर्व हाथमुंह धोना आवश्यक है, इस्लाम में यह "वजू" कहलाता है। नमाज व्यक्ति अकेला भी पढ़ सकता है और सामूहिक रूप में भी, यानि बाजमाअत । सामूहिक या बाजमाअत जब नमाज पढ़ी जाती है तब उसे किसी पेश इमाम के पीछे पढ़ा जाता है, उसी का अनुसरण किया जाता है। जुमा की नमाज, ईद की नमाज सदैव सामूहिक रूप में पढ़ी जाती है। ___ नमाज पढ़ने के लिए जब व्यक्ति खड़ा होता है तो पूर्ण रूप से एकाग्रावस्था में रहे—एकाग्रचित्त रहे; यह समझे कि मैं अल्लाह के समक्ष हूं, उसके दरबार में हाजिर हूं । अतः उसमें विनम्रता का, असहायता का, छोटेपन का भाव विद्यमान रहे यानि वह पूर्णतः निरभिमानी हो। अल्लाह की महिमा-गरिमा में उसका रोम-रोम डूबा रहे । नमाज पढ़ने की नीयत' हृदयेच्छा जुबान से प्रकट करे या मौन रूप में ध्यान कर ले कि वह नमाज पढ़ रहा है। दोनों हाथ कानों की ली तक उठाकर नाक के ऊपर बांधकर खड़ा हो जाए, नजरें नीचे रखे । यह वह दशा है जो किसी बड़े व्यक्ति के समक्ष पहुंचकर विनम्रतापूर्वक खड़ा होने की होती है। किसी कार्यालय में हम अफसर के सामने जब अति निरीह, विनम्र, असहाय बनकर खड़े होते हैं तब दुनिया के मालिक के सामने खड़े हों तो कैसी नम्रता से, आजिजी से खड़े हों, यह सोचने की बात है। नमाज में जो पढ़े उस पर ध्यान रहे, उसके भावों/अर्थों को समझे भी । नमाज में खड़े होकर नमाजी कुरान शरीफ की आयतें पढ़ता है, यही है अल्लाह की वाणी को, उसके आदेशों को बार-बार १. जब व्यक्ति अपनी पत्नी से सहवास करता है या रात्रि में सोते स्वप्नदोष हो जाता है तो उस व्यक्ति को स्नान करना लाजमी हो जाता है । जब तक स्नान नहीं करेगा वह नापाक रहेगा । नापाक अवस्था में न मस्जिद में जाना चाहिए, न कुरान पढ़ना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003145
Book TitleAdhyatma ke Pariparshwa me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNizamuddin
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
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