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नमाज : आस्था और ध्यान
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तू केवल एक मुझ शक्तिमान, सर्वाधार परमेश्वर की शरण में आ जा। मैं तुझ सम्पूर्ण पापों से मुक्त कर दूंगा, तू शोक मत कर। इसी भाव को दूसरे प्रकार से ६२ वें श्लोक में इस प्रकार व्यक्त किया गया है
तमेव शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत ।
तत्प्रसादात्परं शान्ति स्थान प्राप्स्यसि शाश्वतम् ।। हे भारत ! तू सब प्रकार से उस परमेश्वर की ही शरण में जा। उस परमात्मा की कृपा से ही तू परम शांति तथा सनातन परमधाम को प्राप्त होगा । ईश्वर, शास्त्र, वेद, गुरु, महात्मा के प्रति प्रेम, श्रद्धा तथा पूज्य भाव का नाम भक्ति है। भक्ति बिना प्रेम, श्रद्धा तथा समर्पण के नहीं हो सकती। मान, बड़ाई, भय, आसक्ति का परित्याग करके शरीर और संसार में अहंता ममता-विहीन होकर केवल परमेश्वर को ही परम आश्रय, परमगति, सर्वस्व समझना, अनन्यभाव से श्रद्धा-भक्ति प्रेमपूर्वक ईश्वर के नाम-गुण का अनुचिन्तन करना, स्मरण करना भक्ति है, शरणागत होना है। जब बन्दा खुदा की इबादत करता है तो वह उसकी महिमा का गुण-गान करता है, उसके प्रति समर्पित होता है । खुदा के प्रति समर्पित होना सच्ची भक्ति है, इबादत है । कुरान में कहा गया है, अल्लाह के अतिरिक्त किसी की इबादत न करो"अल्ला ताबुदू इल्ला इय्याहू" (यूसुफ ४०) जब 'लाइलाहा इल्लिल्लाहू' कहा जाता है तो इसके द्वारा यही इकरार किया जाता है कि अल्लाह के अतिरिक्त कोई पूज्य, इबादत करने योग्य नहीं है। अल्लाह का फरमान है--"मनुष्य तथा जिन को इसलिए पैदा किया ताकि वे अल्लाह की इबादत करें, उसके प्रति वफादार हों। जो सेवक स्वामी के यहां हर प्रकार की सुविधाएं प्राप्त करता है उसका यह परम कर्तव्य है कि वह अपने स्वामी की आज्ञा का पालन करे, ऐसा काम न करे जो स्वामी को अप्रिय लगे। सृष्टिकर्ता ईश्वर हमें रहने को विस्तृत भूभाग देता है, जमीन से नाना प्रकार की खाद्य-सामग्री प्राप्त होती है, वह हवा, पानी मुफ्त देता है, अनेक सुखप्रद तथा सुविधाजनक वस्तुएं उसने हमें उपलब्ध कराई हैं तो उसकी भला बन्दगी क्यों न करें ? खुदा का जिक्र करना, उसकी महिमा का गान करना, उसकी इबादत करना हमारा उत्तरदायित्व है । यह 'हकूकुल इबाद' कहलाता है। यानि खुदा की बन्दगी करना, इबादत करना प्रत्येक मनुष्य का परम कर्तव्य है । दूसरा हक मनुष्य का संसार तथा संसार में रहने वालों के प्रति है, सृष्टि के प्रति है इसे "हकू कुल्लाह' कहा जाता है, खुदा की मखलूक के प्रति अपने हक को अदा करना । खुदा प्रति अपने हक को अदा करना हकूकुलइबाद है; नमाज पढ़ना, रोजा रखना, हज करना सभी 'हकूकुलइबाद' में शामिल है।
'मेराज' की घटना इस्लाम की, पैगम्बर मुहम्मद साहब के जीवन की
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