SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नमाज : आस्था और ध्यान इस्लाम के पांच प्रमुख सिद्धान्तों में 'नमाज' का अपना विशिष्ट स्थान है, महत्त्व है—(१) तौहीद, (२) रोजा, (३) नमाज, (४) हज, (५) जकात । नमाज प्रत्येक वयस्क स्त्री-पुरुष पर फर्ज है, उसे अदा न करना, दानिस्ता त्याग करना गुनाह है, पाप है । 'नमाज' का अर्थ है नम्रता, आजिजी, पूजा । अरबी भाषा में नमाज को 'सलात' कहते हैं । नमाज इस्लाम का प्रमुख स्तम्भ है। नमाज इबादत में-बंदगी में शामिल है। इबादत 'अबद' से उत्पन्न हुआ है । 'अबद' का अर्थ है बंदा, सेवक, गुलाम । इस प्रकार इबादत का अर्थ है बंदगी, भक्ति । यदि कोई व्यक्ति किसी का सेवक है, बन्दा है तो उसी प्रकार अपने स्वामी के समक्ष प्रस्तुत रहना चाहिए जैसे सेवक रहता है-विनम्र आज्ञाकारी । सेवक के अन्दर तीन गुण होने चाहिए—(१) अपने स्वामी का स्वामित्व स्वीकार करे यानि जो उसे खाना-पीना देता है, उसकी सुरक्षा करता है, उस स्वामी के प्रति पूर्ण बफादारी का प्रदर्शन करना चाहिए । (२) स्वामी की आज्ञा का अनुपालन करना चाहिए, उसकी सेवा से पल भर भी विमुख न रहे। स्वामी के प्रति पूर्णतः समर्पित रहे-अहर्निश, प्रतिक्षण उसकी सेवा में तत्पर रहे। (३) अपने स्वामी का सदैव आदर-सम्मान करे, उसकी महानता को स्वीकार करे । सेवक जितना अधिक अपने को अधम, लघु, तुच्छ समझेगा और स्वामी को उतना ही अधिक महान, गुणसम्पन्न, सर्वशक्तिमान समझेगा, उसकी भक्तिभावना उतनी ही अधिक श्रेष्ठ होगी। तुलसी, सूर जैसे भक्त इसीलिए महान् सन्त, भक्त समझे जाते हैं क्योंकि इन्होंने अपने को अधम, पापी, तुच्छ समझा है; "राम सो खरो है कौन, मोसो कौन खोटो" (तुलसी) तुलसी ने अपने आपके लिए यहां तक कहा है (वफादारी के कारण), मेरे गले में राम-नाम का पट्टा पड़ा हुआ है। (रामनाम की जेवड्री मुतिया मेरो नाम)। इस्लाम में भक्तिभावना के अन्तर्गत भक्त को पूर्णत: अल्लाह के प्रति समर्पित होना है—आत्मसमर्पण करना (अल्लाह के समक्ष) भक्ति का ---इबादत का श्रेष्ठ रूप है। 'गीता में भी समर्पण-भाव को भक्ति का प्रथम गुण मानो है--- सर्वधर्मान्तपरित्यज्य मामेकं शरणं व्रज । अहं त्वा सर्वपापेम्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः ।। अर्थात् सम्पूर्ण धर्मों को-सम्पूर्ण कर्त्तव्यकर्मों को मुझमें त्यागकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003145
Book TitleAdhyatma ke Pariparshwa me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNizamuddin
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy