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________________ अध्यात्म के परिपार्श्व में का पठन करना चाहिए-कुरान शरीफ पढ़ना चाहिए। इस माह इबादत करने का सत्तर गुना पुण्य मिलता है। रोजी में भी बरकत की जाती है अल्लाह की तरफ से । रमजान में सूर्यास्त होने पर "इफ्तार" (या पारणा) किया जाता है और पौ फटने से पूर्व जो खाया-पिया जाता है उसे "सहरी" कहते हैं । बिना "सहरी" खाए रोजा रखा जा सकता है, परन्तु कुछ दुश्वार होता है । सहरी खाना बेहतर है । रात्रि में "नमाजें-तरावीह" पढ़ते हैं। उस नमाज में सम्पूर्ण कुरान शरीफ का पाठ एक बार किया जाता है और प्रति रात्रि एक-डेढ़ पारा पढ़ा जाता है । रमजान में "शबे-कद्र" आती है जिसमें प्रथम बार 'कुरान शरीफ' नाजिल हुआ। इस महारात्रि में इबादत करने का पुण्य एक हजार रात की इबादत करने के बराबर मिलता है। । प्रत्येक धर्मानुयायी रोजा/उपवास रखते हैं। ईसाई, यहूदी भी रोजा रखते हैं । हिन्दू धर्म में व्रत या उपवास का विशेष महत्त्व है । कुछ लोग तो एकादशी का/अष्टमी का/मंगलवार का अकसर व्रत रखते हैं। जन्माष्टमी पर भी व्रत रखा जाता है । उपवास रखने का प्रावधान जैनधर्म में भी विद्यमान है। "दसलक्षण" या "पर्युषण पर्व" दिगम्बर तथा श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदायों में मनाया जाता है जो १०/८ दिन तक चलता है। लोग नित स्नान कर देवदर्शन करते हैं । प्रवचन सुनते हैं । शास्त्रों का पाठ/व्याख्या करते हैं। सब अपनी-अपनी सामर्थ्य के अनुसार व्रत/उपवास रखते हैं। भाद्रपद शुक्ला दशमी को 'सुगन्धदशमी पर्व' होता है । उस दिन मंदिर में धूप खेने के लिए जाते हैं । भाद्र शुक्ला चतुर्दशी 'अनन्त चतुर्दशी" कहलाती है। जैनधर्म में इस दिन उपवास रखने से बहुत लाभ/पुण्य मिलता है। यह दसलक्षण पर्व का अंतिम दिन भी होता है । पूजन अर्चन के बाद अनन्त चतुर्दशी व्रत कथा होती है। जुलूस भी निकालते हैं । निर्जल उपवास करने वाला कथा का श्रवण कर जल लेते हैं । श्वेताम्बर में इसे "पर्युषण पर्व" कहा जाता है। साधु लोग दस प्रकार के कल्प/आचार करते हैं । "पर्युषण" का अर्थ है पूर्ण रूप से वसना । एक स्थान पर स्थिर रूप में रहना “पर्युषण' कहलाता है। इसे "संवत्सरी" या "सांवत्सरिक पर्व" भी कहते हैं-साधुओं के वर्षावास निश्चित करने का दिन यही होता है । भाद्र कृष्णा १२ से शुवला चौथ तक आठ दिन श्वेताम्बर सम्प्रदाय पर्युषण मनाता है । उपवास मन को, तन को निर्मल बनाता है। इस पर्व की समाप्ति पर सब वैर-भाव भूल कर गले मिलते हैं और "मिच्छामि दुक्कड" कहकर क्षमायाचना भी करते हैं। जो दूर होते हैं उनसे पत्र लिखकर क्षमायाचना की जाती है। इन दिनों "तत्त्वार्थसूत्र", "कल्पसूत्र", "भक्तामर स्तोत्र", "रत्नकरण्ड श्रावकाचार" आदि शास्त्रों का अध्ययन किया जाना पुण्यदायक समझा जाता है । अष्टान्हिका पर्व, वीर शासन जयन्ती, श्रुतपंचमी, अक्षयतृतीया, दीपावली, रक्षाबंधन जैसे पर्वो को मनाते समय भी व्रत या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003145
Book TitleAdhyatma ke Pariparshwa me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNizamuddin
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
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