________________
रमजान : जैन दर्शन के आलोक में
'रमजान' इस्लाम धर्म में विशिष्ट महत्त्व रखता है। यह एक पवित्र आध्यात्मिक महीना है जिसमें सभी मुसलमान दिन में रोजा रखते हैं, उपवास रखते हैं । 'रमजान' अरबी भाषा का शब्द है जो 'रम्ज.' से निकला है । रम्ज का अर्थ है प्रचण्ड गर्मी. जलन । कहते हैं जिस वर्ष रोजे फर्ज किए गए उस वर्ष सख्त गर्मी पड़ी थी, फिर बारिश भी हुई, इसलिए इसे रहमत की वर्षा का माह कहा जाता है। रोजा "सोम' भी कहलाता है । 'सोम' का अर्थ है रुकना, ठहरना, यानी खाने-पीने तथा अन्य इन्द्रिय-सुखों से अपने आपको रोकना । पौ फटने के पूर्व से लेकर सूर्यास्त तक कुछ न खाना-पीना साधारण रूप में रोजा कहलाता है लेकिन साथ में इन्द्रिय-निग्रह भी आवश्यक माना जाता है। कहा जाता है रमजान, रहमत, मगफिरत (माफी, नजात, छुटकारा) और नरक से आजादी का महीना है। कुरान शरीफ में उल्लेख है-ए ईमान वालो ! तुम पर रोजे उसी प्रकार फर्ज किए गए जैसा कि पूर्व की जातियों (लोगों) पर किए गए ताकि तुम परहेजगार (संयमी) बनो। अधिक बीमार हो, यात्रा में हो तो बाद में उतने रोजे रख लो जितने इस दौरान छूट गए हों । जो इतने दुर्बल (शारीरिक) हों कि रोजा न रख सकें, वे किसी गरीब को खाना खिला दिया करें। रमजान के महीने में रोजे फर्ज किए गए। (सन् दो हिजरी में, मदीना में) और इसी माह कुरान शरीफ, अवतरित हुआ (सन् ६१२ ई०) जो लोगों के लिए सशिक्षा है।" (२, १८३-८५) रोजा संयम और आत्मानुशासन का मार्ग दर्शाता है। यह मनुष्य को अन्तर्वाह्य पवित्र बनाता है । बुराइयों से बचाता है। शैतान को यद्यपि इस माह बन्द रखा जाता है, लेकिन वर्ष की बुराइयों का इतना अधिक बोझ रहता है-बुरे संस्कार जड़ जमाए रखते हैं कि उनका बहुत कुछ प्रभाव मनुष्य पर पड़ा रहता है इसलिए शैतानी कुप्रवृत्तियां उसे सदमार्ग से विचलित करती रहती हैं तभी तो यह रमजान जैसे पवित्र महीने में भी दुष्कर्म तथा दुर्व्यवहार करता है। रोजा पूर्ण संयम, संतोष, अनुशासन. इन्द्रिय-निग्रह का रास्ता दर्शाता है यानी रोजे की दशा में क्रोध न करें, अपशब्द न बोलें, चुगली न करें, कान से बुरी बात न सुनें, हाथ से बुरा काम न करें, आंख से बुरा न देखें यानी किसी पर कुदृष्टि न डालें, कुमार्ग पर न चलें-सभी इन्द्रियों को पूर्ण संयम में रखना रोजा है । भूखा, प्यासा होने पर भी सामने रखी अच्छी वस्तुओं को न खाएं, न पिएं । जहां तक हो सके रोजेदार को दान-खैरात भी करना चाहिए, शास्त्र
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org