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अध्यात्म के परिपार्श्व में
उत्तम क्षमा मार्दवार्जवसत्य शौच संयम
तपस्त्यागाकिंचन्यब्रह्मचर्याणि धर्मः । क्षमा को दस धर्मों में सर्वप्रथम स्थान दिया है । क्षमा से ब्रह्मचर्य तक उत्तम धर्म आत्मा के स्वभाव है। यह पर्व मैत्री का, सद्भाव का संवाहक है। गुणों की पूजा-आराधना का पर्व है, मन को प्रक्षालित करने का महदनुष्ठान है, भीतर झांकने का अवसर देने वाला पर्व है। आत्मिक व आध्यात्मि उपलब्धियों की साधना का पर्व है। 'तत्त्वार्थसूत्र', 'कल्पसूत्र' आदि ग्रन्थों का पाठ भी इस अवसर पर किया जाता है। जैनधर्म के प्रचार-प्रसार में चातुर्मास का, पर्युषण पर्व आदि का विशेष महत्त्व है। यही इस धर्म को ऊर्जा प्रदान करते हैं। यह अलग बात है कि कहीं-कहीं ऐसे अवसर पर आडम्बर, प्रदर्शन, तड़क-भड़क अधिक आ जाती है, लेकिन यह बात तो दूसरे धर्मोंजातियों के पर्वोत्सवों में भी देखी जाती है। धर्म का काम आत्मावलोकन की ओर ले जाने का है। आइन्स्टाइन ने ठीक कहा था कि जब संसार के सारे द्वार बन्द हो जाते हैं तब एक द्वार फिर भी खुला रहता है और वह है धर्म का द्वार। जब पर्युषण आदि पर्व आते हैं तो यह अवश्य धर्म का द्वार खोलते हैं, व्यक्ति की धर्मभावना को जगाते हैं। 'दशवैकालिक' का प्रथम सूत्र
धम्मो मंगलमुक्किट्ठ, अहिंसा संजमो तवो।
देवा वि तं नमसंति, जस्स धम्मे सयामणो ।। अर्थात् धर्म उत्कृष्ट मंगल है। अहिंसा, संयम और तप उसके लक्षण हैं। जिसका मन सदा धर्म में रमा रहता है उसे देव भी नमस्कार करते हैं। महावीर का धर्म अहिंसा का धर्म है, अपरिग्रह का धर्म है, अनेकान्त का धर्म है, यह जीवों के कल्याण का धर्म है, अतः शाश्वत धर्म है।
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