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अध्यात्म के परिपार्श्व में चोरी-डकैती, रिश्वत, भाई-भाई में झगड़ा, स्वामी - सेवक में झगड़ा, बड़ी ही भयानक स्थिति है आज हमारे समाज की । सबकी निगाहों में शंका है, भय है, हिंसा है । ममता, प्रेम, स्नेह, सहानुभूति, करुणा की नदियां सूख गयी हैं, जीवन रेगिस्तान बन गया है । विसंगतियों के व्यूह में फंसा है आदमी, विषमता में सांस लेने से दम घुट रहा है । शुद्धता न वचन में है न व्यवहार में । एक-दूसरे की टांग पकड़कर खींच रहा है, उसे गिराने के हथकण्डे आजमा रहा है । सन्तोष और शान्ति का कहीं नाम नहीं ।
अधम से अधमतर होता जा रहा है मनुष्य । साम्प्रदायिकता की भावना उत्तेजित कर निर्दोष लोगों का खून बहा रहा है, धर्म को निजी स्वार्थ के लिए प्रयोग कर रहा है। जीवन मूल्यों का ह्रास हो रहा है और मनुष्य मौन साधे खड़ा है । शापेनहावर ने ठीक कहा है – 'दुनिया में बुराइयां इसलिए नहीं हैं कि बुरे आदमी ज्यादा बोलते हैं, बल्कि इसलिए है कि भले आदमी समय पर चुप रह जाते हैं ।' गुरुनानक ने सज्जन लोगों, सात्विक वृत्ति वाले धर्मानुरागी गांव वालों को कह दिया कि वे उजड़ जाएं। यह शाप नहीं वरदान था, क्योंकि वे अच्छे शील वाले लोग दूसरे स्थान पर जाकर सद्गुणों का प्रचार करेंगे, इससे मानव समाज में शील का, धर्म का, सदाचार का प्रसार होगा । उन्होंने उन लोगों को अपने गांव में बसे रहने का वरदान दिया जो दुराचारी थे, हिंसक थे, अधर्मी थे । यह इसलिए ताकि इन बुरे लोगों के दूसरी जगह जाने पर बुराई न फैले, वे यहीं सीमित जगह केन्द्रित रहें ।
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जैनधर्म के श्रमण आज भी वर्ष के आठ महीने भ्रमण करते हैं; चलते-फिरते रहते हैं और जैनधर्म का निरन्तर प्रचार करते रहते हैं । वर्षा - योग या चातुर्मास में (वर्षा के चार महीनों में) वह हिंसा रोकने के लिए अधिक घूमते-फिरते नहीं । एक स्थान पर रह कर श्रावकों के आचार को शुद्धि की ओर ले जाने का प्रयत्न करते हैं । सामायिक भी आचार की शुद्धि की एक क्रिया है । इसके द्वारा जीवन-मूल्यों को पुनर्जीवित किया जा सकता है, उनके ह्रास को रोका जा सकता है । आज मानवता का, अहिंसा का अपरिग्रह का नाम ग्रन्थों तक ही सीमित हो गया है । हम प्रत्येक कार्य स्वार्थबद्ध दृष्टि से करते हैं। समाज में नारी भी परिग्रह की सीमा में आ गयी है, वह कामुकता की मूर्ति के अतिरिक्त और कुछ नहीं । उसका पावन मातृत्व जैसे तिरोहित हो गया है, मनुष्य में ब्रह्मचर्य का नाम नहीं । सत्य जीवन से खाली है फिर मानवता कहां रहे ? जीवन-मूल्य कहां रहे ? प्राप्ति कैसे होगी ?
फिर मोक्ष की
सामायिक द्वारा हम पांच महाव्रतों या महाणुव्रतों का अनुपालन करते हैं तथा सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान, और सम्यक् चारित्र के मार्ग पर चल कर
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