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अणुव्रत के कार्यकर्ता उनके सामने उक्त तीनों प्रश्न उपस्थित करते हैं । यदि वे लोग प्रश्नों को उत्तरित करने में रुचि लेते हैं और अपनी समस्याओं के समाधान में उनके सहयोग की अपेक्षा करते हैं तो वे मिलने का सिलसिला जारी रखते हैं। एक वर्ष में कम-से-कम दस बार मिलकर चर्चा करना उनका लक्ष्य है।
कार्यकर्ता जिज्ञासु व्यक्तियों को अणुव्रत, प्रेक्षाध्यान और जीवन विज्ञान का प्राथमिक साहित्य देते हैं । उनके बारे में अवगति देते हैं और प्रायोगिक जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं । ध्यान, कायोत्सर्ग और अनुप्रेक्षा के प्रयोग भी बताते हैं । जो लोग प्रयोग करते हैं, उन्हें त्राण का अनुभव होता हैं । शहरी भागदौड़, व्यावसायिक व्यस्तता और अन्तहीन महत्त्वाकांक्षाओं से उपजा तनाव वर्तमान युग की सबसे बड़ी समस्या है। इसका प्रभाव छोटे-बड़े सब प्रकार के लोगों पर है । इसलिए तनावमुक्ति के कारगर उपायों के प्रति आकर्षण होना अस्वाभाविक नहीं है ।
दूरदर्शन की अपनी उपयोगिता है । पर आज उसका जितना दुरुपयोग हो रहा है, चिन्ता का विषय है। बच्चों की संस्कारहीनता में उसकी मुख्य भूमिका है। उसने विद्यार्थियों की पढ़ाई को भी प्रभावित किया है। घंटों, प्रहरों टी. वी. के सामने बैठने वाले बच्चे अध्ययन के लिए समय कहां से पाएंगे?
उक्त दोनों प्रकार की समस्याओं को समाहित करने के लिए बहुत लोगों के मन में तड़प है । इन समस्याओं का समाधान भी है। कठिनाई एक ही है कि उनकी पहुंच सही जगह नहीं है । धार्मिक नेता साम्प्रदायिक अभिनिवेशों से मुक्त नहीं हैं । वे मन्दिर-मस्जिद की बातों में इतने उलझ जाते हैं कि करणीय काम छूट जाते हैं । वे दाड़िम के दानों को फेंक कर छिलका खाने की भूल कर रहे हैं। ऐसी भूल का अनुभव करना भी एक बड़ी उपलब्धि हो सकती है ।
देश में जितनी अणुव्रत समितियां हैं, वे क्षेत्रीय अपेक्षा के अनुसार कुछ रचनात्मक काम हाथ में लें और चुने हुए व्यक्तियों से सम्पर्क कर उन्हें अणुव्रत-दर्शन और उसके निदेशक तत्त्वों की विस्तृत जानकारी दें, उनके सामने ऐसे प्रश्न उपस्थित करें तो उनको एक नयी दिशा मिल सकती है।
७६ : दीये से दीया जले
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