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पक्ष को आंखों से ओझल नहीं रख पाएंगे। वैज्ञानिक उपलब्धियों का बढ़ चढ़कर गौरव गाने वाले वैज्ञानिक ही एक समय के बाद उनसे होने वाले दुष्प्रभावों के प्रति जनता को आगाह करते हैं। फ्रिज, टी. वी., ए. सी., डिब्बा- बंद भोजन आदि सुविधाओं के जितने साधन हैं, उन सबके दुष्परिणामों पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण मुखर हो रहा है। जो विज्ञान आज मनुष्य के लिए सुख-सुविधा का दावा करे, कल वही उसका प्रतिरोध करे, उस विज्ञान का विश्वास कैसे किया जा सकता है?
जिन वैज्ञानिक उपकरणों ने आदमी को अपंगता की दिशा में ढकेला है, जिनके कारण उसकी शक्तियां कुंठित हुई हैं और अनेक अनपेक्षित चीजें मानव जीवन के साथ जुड़ी हैं। देखना यह है कि इसमें दोष किसका है? विज्ञान का अथवा उपभोक्ता का? विज्ञान कितने ही नए आविष्कार करे, उनके प्रयोग में संयम रखा जाए तो स्थिति इतनी जटिल नहीं होती। आज जब कि वैज्ञानिक उपकरण प्रचुर मात्रा में प्रयुक्त होने लगे हैं, वे छूट सकें, यह संभव प्रतीत नहीं होता। यदि उनका उपयोग है तो छोड़ने की बात समझ में भी नहीं आएगी। समझने का एक ही महत्त्वपूर्ण तत्त्व है, वह है अणुव्रत दर्शन । अणुव्रत दर्शन के अनुसार जीवन को ढालने का लक्ष्य हो तो असीम संग्रह और असीम भोग की समस्या को स्थायी समाधान मिल सकता है। यही एक मार्ग है, जो दो विपरीत दिशाओं में सेतु बनकर मनुष्य को अपने गंतव्य की ओर आगे बढ़ाने में पूरा-पूरा सहयोग देता है।
६८ : दीये से दीया जले
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