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३१. समस्या संग्रह और असीम भोग की
भारत के स्वर्गीय युवा प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इक्कीसवीं शताब्दी में प्रवेश की तैयारी पर अतिरिक्त बल दिया था । उनके युग में इस विषय पर बहुत चर्चा हुई। उनके जाने के बाद उस चर्चा के स्वर मन्द हो गए । वैसे हर विषय को कई पहलुओं से देखा जाता है। उस पर चिन्तन के कोण भी विविध हैं । व्यक्ति हो, वस्तु हो या कोई विषय, एक ही कोण से देखना और सोचना अधूरापन है । भगवान् महावीर ने अनेकान्त दृष्टिकोण का प्रतिपादन कर सत्य तक पहुंचने के अनन्त द्वार खोल दिए । प्रत्येक द्वार तक किसी की पहुंच हो या नहीं, पर जब सामने अनेक द्वार हों तो किसी एक ही द्वार पर दस्तक देकर विराम क्यों लिया जाए?
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कुछ लोग आधुनिक विज्ञान और नई तकनीक के साथ इक्कीसवीं शताब्दी में प्रवेश करने के इच्छुक हैं। अपना-अपना चिन्तन और अपनी-अपनी धारणाएं । एक दृष्टि से मनुष्य को विज्ञान और टेक्नोलॉजी ने बहुत सुविधाएं दी हैं। मनुष्य की मनोवृत्ति सुविधाओं के सांचे में ढलती जा रही है । उसका जीवन यांत्रिकता की ओर अग्रसर हो रहा है। आवश्यकता और अनावश्यकता के बीच भेदरेखा किए बिना वह हर वैज्ञानिक सुविधा को स्वीकार करता जा रहा है। उसके गुण-दोषों पर विमर्श करने का समय भी उसके पास नहीं है । ऐसी स्थिति में वह आने वाली सदी में विकसित साइन्स और उन्नत टेक्नोलॉजी का सपना देखे तो आश्चर्य जैसा कुछ भी नहीं है ।
साइन्स और टेक्नोलॉजी का विरोध हमारा लक्ष्य नहीं है । इनका विरोध वे करते हैं, जो एकांगी दृष्टि से सोचते हैं। इनकी धज्जियां वे उड़ाते हैं, जो नितान्त कट्टरपंथी हैं। इस सन्दर्भ में अनेकान्त दृष्टि का उपयोग किया जाए तो विज्ञान के वैशिष्ट्य को खुले मन से स्वीकार करने वाले भी इसके नेगेटिव
समस्या संग्रह और असीम भोग की : ६७
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