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पास उपाधियां नहीं हैं, प्रमाणपत्र नहीं हैं और वह कोई बड़ा आदमी भी नहीं है। फिर भी वह मेरी कसौटियों पर खरा उतरा है।' एक व्यक्ति, जो देखने में बहुत रोबदार दिखाई दे रहा था, कुछ आगे बढ़ कर बोला-'आपने हमारी इज्जत मिट्टी में मिला दी। आपको ऐसे छोकरे की जरूरत थी तो इतने बड़े लोगों को बुलाया क्यों? क्या हमारी उपाधियों एवं पदवियों का कोई मूल्य नहीं है? राष्ट्रपति ने कहा-'महोदय ! मुझे आपके प्रमाणपत्रों की जरूरत नहीं है। आपकी योग्यता का सबसे बड़ा या सीधा प्रमाणपत्र है आपका व्यवहार । आपने एक पुस्तक को अपने पैरों तले कैसे रौंद डाला? क्या यही है आपकी दक्षता? जो अधिकारी एक पुस्तक को संभाल कर नहीं रख सकता, वह मेरे कागजात कैसे संभाल पायेगा? ___अणुव्रत कहता है-कोई व्यक्ति पूजा-पाठ करे या नहीं, दान-पुण्य करे या नहीं, धर्म का उपदेश करे या नहीं, पर अपना व्यवहार शुद्ध रखे, नैतिकता को आधार मानकर चले, मानवता को सुरक्षित रखे, वह सही अर्थ में मानव कहलाने का अधिकारी है। व्यक्ति का मूल्य सत्ता और संपदा के आधार पर नहीं, डिग्रियों और सर्टिफिकेटों पर नहीं, उन्नत आचरण के आधार पर आंका जाता है। मनुष्य का चरित्र समाज और राष्ट्र के चरित्र का दर्पण होता है। वह जितना निर्मल होगा, समाज और राष्ट्र का प्रतिबिम्ब उतना ही साफ होगा। अणुव्रत की प्रेरणा चरित्र-निर्माण की प्रेरणा है। चरित्र का दीया जलता रहेगा तो अनैतिकता के अन्धकार को विदा लेनी ही होगी।
६६ : दीये से दीया जले
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