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असहमति को शिष्ट भाषा में अभिव्यक्ति दी जा सकती है, पर गाली-गलौज पर उतर जाने का औचित्य क्या है?
किसी को सूरज के प्रकाश से ही घृणा हो तो वह अपनी आंखें बंद कर सकता है, किन्तु उस पर धूल फेंकने का परिणाम क्या होगा? इसी प्रकार किसी महापुरुष का कोई काम किसी को पसंद न आए तो वह उससे बड़ा काम करके दिखा दे। यदि बड़ी लकीर खींचने की क्षमता न हो तो छोटी लकीर को मिटाने से क्या लाभ होगा?
किसी पक्ष-प्रतिपक्ष में जाना हमें अभीष्ट नहीं है। किसी राजनीतिक दल विशेष से हमारा कोई संबंध भी नहीं है। यदि तटस्थ दृष्टि से देखा जाए तो कहना होगा कि महात्मा गांधी जैसे विरल व्यक्तित्व को लेकर इस प्रकार की छीछालेदर चिन्तन की दरिद्रता है। समझ में नहीं आता कि उनका अपराध क्या था? जिस युग में लोक-मंगल की भावना से किए गए कार्य का प्रतिवाद गाली-गलौज की भाषा में होता है, उस युग की बलिहारी है। मुझे तो ऐसा प्रतीत होता है कि यह दुषमा काल की दुष्टता ही है, जो किसी व्यक्ति को विवेक शून्य आचरण करने के लिए प्रेरित करता है। कोई कुछ भी करे, सूरज को हथेलियों से ढका नहीं जा सकता। गांधी के कर्तत्व को कभी तिरोहित नहीं किया जा सकता।
४८ : दीये से दीया जले
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