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२२. सूरज पर धूल फेंकने से क्या ?
महात्मा गांधी भारत के ऐसे व्यक्तित्व हुए हैं, जिनके प्रति प्रायः सभी भारतवासी हार्दिक श्रद्धा से प्रणत हैं । वे कोई गृहत्यागी संत नहीं थे, पर भारतीय संत परम्परा में उनके त्यागमय चरित्र की चमक देखी जा सकती है । इसी कारण कवीन्द्र रवीन्द्र ने उनको महात्मा कहकर सम्बोधित किया । उनकी तपस्या की कीर्तिगाथाएं दिगन्तों में अनुगुंजित हैं । वे भारतीय जनता के ही नहीं, विश्व - मानव के श्रद्धेय रहे हैं । लोकमंगल की प्रेरणा से प्रेरित उनके मानस में जातिवाद, वर्गवाद, सम्प्रदायवाद जैसा कोई विभाजन नहीं था। वे अस्पृश्यता के घोर विरोधी थे । समाज से सर्वथा अलग-थलग, 1 दलित और अछूत कहलाने वाले लोगों को सवर्णों के साथ जोड़ने के लिए उन्होंने जो प्रयत्न किया, काल की परतें उसे कभी आवृत नहीं कर सकतीं । मानवीय धरातल को उन्नत बनाने के लिए उन्होंने विश्व-बंधुत्व का सपना देखा । जाति आदि को लेकर मनुष्यों के बीच बढ़ती हुई दरार को पाटने के लिए उन्होंने कठिन संघर्ष का रास्ता अपनाया। इसी कारण वे महापुरुष, युगनायक और महान् द्रष्टा के रूप में अपनी पहचान छोड़ गए।
महात्मा गांधी प्रयोगवादी व्यक्ति थे । उन्होंने अपने व्यक्तिगत जीवन में प्रयोग किये । समाज और देश के लिए प्रयोग किये । दलित वर्ग के लिए 'हरिजन' शब्द का व्यवहार भी उनका एक प्रयोग था । वर्तमान युग की सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि हर व्यक्ति, हर सिद्धांत और हर क्रिया-कलाप को राजनीति के रंग से रंगा जाता है । यह आवश्यक नहीं है कि किसी व्यक्ति के विचारों और प्रयोगों के साथ सबकी सहमति हो । हर व्यक्ति को सोचने की स्वतंत्रता है, पर इसका मतलब यह तो नहीं है कि किसी का चिन्तन हमारे चिन्तन से मेल न खाए तो उस पर कीचड़ उछाला जाये। अपनी
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