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कालिदास आतुरता के साथ बोला-'हुआ क्या? संन्यासी बोला-'महाप्रतापी महाराज भोज को क्रूर काल ने उठा लिया। इसी कारण मैं धारा छोड़कर आया हूं।'
कालिदास ने भोज की मृत्यु का संवाद सुना और उसका कविहृदय मुखर हो उठा
अद्य धारा निराधारा, निरालम्बा सरस्वती।
पंडिता खंडिताः सर्वे, भोजराजे दिवंगते॥ राजा भोज के दिवंगत हो जाने से नगरी धारा निराधार हो गई। सरस्वती का सहारा छूट गया और विद्वान टूट गए।
- संन्यासी के वेश में राजा भोज यह बात सुनकर मुस्करा उठा। उसकी मुस्कान देखते ही कालिदास को भान हो गया कि वह ठगा गया। उसने तत्काल उक्त श्लोक को बदलकर कहा
अद्य धारा सदाधारा, सदालम्बा सरस्वती।
पंडिता मंडिताः सर्वे, भोजराजे भुवंगते॥ बिछुड़े हुए दो मित्र मिल गए। भोज राजा कालिदास को साथ लेकर धारा लौट गए।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में महाकवि कालिदास का उक्त पद्य मुझे याद आ रहा है। मैं राजा भोज के स्थान पर संयम को प्रतिष्ठित कर कहना चाहता हूं कि संयम का आधार छूटने से पूरी मानव जाति निराधार हो गई है। मानवीय मूल्यों का सहारा छूट गया है और नीतिनिष्ठ लोगों का कोई संगठन नहीं रहा है। यदि मानवता को बचाना है, मानवीय मूल्यों को प्रतिष्ठा देनी है और सही अर्थ में मानव का निर्माण करना है तो संयम को पुनरुज्जीवन देना होगा। अणुव्रत का सारा प्रयत्न इसी दिशा में है। मेरा यह निश्चित विश्वास है कि मानवता को संरक्षण देने वाला कोई तत्त्व है तो वह संयम
४६ : दीये से दीया जले
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