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२१. मानव जाति का आधार
धारा नगरी के राजा भोज और सस्कृत के महाकवि कालिदास के बारे में अनेक कथाएं, दन्तकथाएं, और घटनाएं प्रसिद्ध हैं। किसी विवादास्पद प्रसंग में कोई विद्वान कुछ भी कह दे, राजा भोज को संतोष नहीं होता। महाकवि कालिदास ही राजा को संतुष्टि दे सकता था। एक बार राजा भोज के मन में एक नई बात पैदा हुई। राजा ने कालिदास से कहा-'महाकवे ! मेरी मृत्यु के बाद आप जो मरसिया पढ़ेंगे, उसे मैं आज अपने कानों से सुनना चाहता हूं।' भोज ऐसी बात कह सकता था, पर कालिदास जैसा विवेकशील और विद्वान व्यक्ति उसे स्वीकार कैसे करता? वह बोला-'मैं आपकी दीर्घजीविता की कामना करता हूं। इस सम्बन्ध में कविता सुनना चाहें तो सुना सकता हूं।'
राजा भोज जिस बात को पकड़ लेता, वह झटपट उससे छूटती नहीं थी। उसने आग्रह किया। कालिदास बोला-'आप और कोई आदेश दें, मैं अविलम्ब उसकी क्रियान्विति करूंगा, पर ऐसी कविता नहीं सुनाऊंगा।' राजा के आग्रह ने आक्रोश का रूप ले लिया और महाकवि कालिदास को देश से निर्वासित कर दिया। कालिदास चला गया। राजा भोज का मन नहीं लगा। वह वेश बदलकर कालिदास की खोज में निकल पड़ा। कुछ महीनों बाद एक गांव के बाहर तालाब के किनारे कालिदास बैठा था। संन्यासी के वेश में राजा वहां पहुंच गया। कालिदास ने पूछा-'महात्मन् ! कहां से आ रहे हैं? संन्यासी बोला-'धारा नगरी से।' कालिदास के स्मृति पटल पर राजा भोज
और धारा की अनेक स्मृतियां उभर आईं। उसने उत्सुक होकर पूछा-'महाराज ठीक हैं न? संन्यासी कालिदास को पहचान रहा था। वह व्यथित होकर बोला-'महाराजा के सम्बन्ध में कुछ मत पूछो। कहने की बात नहीं है।'
मानव जाति का आधार : ४५
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