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२०. आशा का दीप : आस्था का उजास
यूनान का सम्राट सिकन्दर भारत आया। भारतीय लोगों की जीवन-शैली कैसी है? उनके चिन्तन का स्तर कैसा है? उनका आचार-व्यवहार कैसा है? सिकन्दर के मन में ढेर सारे प्रश्न थे। देश की स्थिति का आकलन करने के लिए वह घूमता-घूमता तक्षशिला पहुंचा। शहर से बाहर खेत में उसका पड़ाव हुआ। वहां किसानों की सभा हो रही थी। सभा में कुछ लोग काफी गंभीर चर्चा में उलझे हुए थे। सिकन्दर के मन में कुतूहल पैदा हुआ। उसने एक व्यक्ति को अपने पास बुलाकर पूछा- 'बात क्या है? ये लोग किस विषय में उलझे हुए हैं? उस व्यक्ति ने पूरे घटनाचक्र को विस्तार के साथ बताते हुए कहा
___ 'यहां कुछ समय पहले एक खेत की बिक्री हुई। खेत खरीदने वाले ने उसमें हल जुतवाए। हल चलाने वाले को वहां स्वर्णमुद्राओं से भरा कलश मिला। उसने जमीन के मालिक को सूचित किया। वह खेत पर आया। उसने स्वर्णमुद्राओं से भरा कलश देखकर कहा- 'मैंने खेत खरीदा है। खेत पर मेरा अधिकार है। पर इस जमीन से जो खजाना निकला है, वह मेरा नहीं हो सकता। खेत के पूर्व मालिक को बुलाकर यह उसे सौंपना होगा।'
खेत का पूर्व मालिक आया। पूरी स्थिति की जानकारी पाकर वह बोला-'मैंने खेत बेच दिया। अब इस पर मेरा कोई अधिकार नहीं है। यह खजाना मैंने यहां गाड़ा नहीं। इस दृष्टि से भी इस पर मेरे स्वामित्व का कोई औचित्य नहीं है। जिनका खेत, उनका खजाना। मुझे बीच में न घसीटें तो अच्छा रहेगा। खेत के पूर्व और वर्तमान-दोनों मालिक अपनी बात पर अड़ गए। दोनों में से कोई भी वह स्वर्णमुद्राओं से भरा कलश अपने घर ले जाने के लिए तैयार नहीं हुआ। आखिर पंचायत बुलाई गई। पंचों ने दोनों व्यक्तियों
आशा का दीप : आस्था का उजास : ४३
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