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________________ १७. बीमारी अनास्था की जीवन अशाश्वत है, क्षणभंगुर है, यह एक सार्वभौम सिद्धान्त है। पूर्वजन्म में किसी का विश्वास हो या नहीं, पुनर्जन्म को कोई माने या नहीं, किन्तु यह तथ्य निर्विवाद है कि जो जीवन जीया जा रहा है, वह सदा नहीं रहेगा। वह कब तक रहेगा? इसका भी किसी को भरोसा नहीं है। फिर भी मनुष्य प्रमाद करता है, असद् आचरण करता है और परिणाम की चिन्ता किए बिना प्रवृत्ति करता है। किसी मनुष्य का आत्मा या परमात्मा में विश्वास हो या नहीं, उसकी सुख-शान्तिमय जीवन जीने की आकांक्षा सदा प्रबल रहती है। वह जीवन की पवित्रता के प्रति आस्थाशील हो या नहीं, पर दूसरे के गलत आचरण को सहन नहीं कर पाता। सत्य की खोज में उसकी शक्ति लगे या नहीं पर वह सत्य को समझने का दावा करता रहता है। समाज और राष्ट्र के लिए उसने कछ किया हो या नहीं, पर वह समाजद्रोही और राष्ट्रद्रोही कहलाना नहीं चाहता। ऐसी स्थिति में मनुष्य को अपने जीवन की दिशा का निर्धारण करना चाहिए। उसे ऐसी दिशा में प्रस्थान करना चाहिए, जो उसके जीवन को तनाव, कुंठा, संत्रास और अस्थिरता की त्रासदी से बचा सके। __मनुष्य जानता है कि जैसा बीज बोया जाता है, वैसा ही फल मिलता है। वह यह भी जानता है कि उसके लिए करणीय क्या है और अकरणीय क्या है ? फिर भी वह करणीय को छोड़कर अकरणीय में रस लेता है। वह मौत से डरता है, फिर भी जहर निगलता जा रहा है। वह अशान्ति नहीं चाहता, फिर भी ऐसे काम करता है, जिनसे अशान्ति को रोका नहीं जा सकता। वह जेल से डरता है, फिर भी हत्या, डकैती आदि दुष्कृत्यों से विरत नहीं होता। क्यों? वह कौन-सी अभिप्रेरणा है, जो मनुष्य को गलत मार्ग पर बीमारी अनास्था की : ३७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003144
Book TitleDiye se Diya Jale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size9 MB
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