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मंच है, जिसका उपयोग अच्छा जीवन जीने की आकांक्षा रखने वाले लोग कर सकते हैं। )
कुछ लोग कहते हैं- 'भ्रष्टाचार इतना बढ़ गया, नैतिक मूल्यों का क्षरण हो गया, ऐसे समय में अणुव्रत क्या कर सकता है? नैतिक पतन की बात जो लोग कर रहे हैं, वे गलत नहीं हैं । जीवन के हर क्षेत्र में सदाचार की कमी आई है। फिर भी मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि भारत की भूमि से सदाचार की जड़ें नहीं उखड़ सकतीं। भारतीय जनता कभी चरित्रशून्य हो नहीं सकती । उतार-चढ़ाव का जहां तक सवाल है, वह हर युग में आता रहता है । महत्त्वपूर्ण बात है दृष्टिकोण की । व्यक्ति जिस दृष्टि से देखता है, उसे संसार वैसा ही दिखाई देता है ।
दो मित्र बात कर रहे थे । एक बोला- 'कैसा कलिकाल है ! चारों ओर अंधेरा-ही-अंधेरा है। दो रात्रियों के बीच एक उजला दिन होता है ।'
मित्र की बात सुनकर दूसरे व्यक्ति ने कहा- 'मुझे तो चारों ओर प्रकाश- प्रकाश दिखाई देता है । दो उजले दिनों के बीच में एक ही अंधेरी रात होती है ।'
एक ही सन्दर्भ में दो व्यक्तियों के भिन्न विचार इस तथ्य को प्रमाणित करते हैं कि दृष्टिकोण के भेद से एक ही बात, एक ही घटना और एक ही दृश्य को अनेक कोणों से देखा जा सकता है और उसके अलग-अलग अर्थ निकाले जा सकते हैं । दृष्टिकोण विधायक हो तो आदमी को सब कुछ अच्छा दिखाई देता है और दृष्टिकोण यदि निषेधात्मक होता है तो प्रकाश भी अंधकार बन जाता है ।
नैतिक मूल्यों के बारे में मेरा चिन्तन यह है कि क्षरण के बावजूद भारतीय संस्कृति मूल्यों से गुंथी हुई है। देश में आज भी अच्छाई और सचाई सुरक्षित है। राख के नीचे अंगारों की तरह वह दबी हुई है । उसे उभारने की अपेक्षा है। अच्छाइयां सामने रहेंगी तो बुराइयां टिक नहीं पाएंगी। बुराइयां अकेली चल ही नहीं सकतीं। उन्हें गति के लिए आलम्बन की अपेक्षा रहती है । वे अच्छाइयों के सिर पर पांव रखकर ही आगे बढ़ सकती हैं। मनुष्य के जीवन में अच्छाइयां और बुराइयां दोनों होती हैं । बुराइयों का पलड़ा भारी न हो, यह जागरूकता उसे अनेक बुराइयों से बचा सकती है ।
धर्म और सम्प्रदाय : ३५
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