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हजारों वर्ष पहले हमारे ऋषियों की तपःपूत वाणी ने जिस सत्य को उजागर किया, उसकी विस्मृति होती जा रही है। मनुष्य ने अपना मस्तिष्क कम्प्यूटर को गिरवी रख दिया है। शायद यही कारण है कि वह स्मरणीय बातों को भूलता जा रहा है। कम्प्यूटर का बहुत उपयोग है, पर उसी के भरोसे रहने से कभी धोखा भी हो सकता है। दूसरों का भरोसा करने से पहले अपने आप पर भरोसा करना जरूरी है। स्वयं पर भरोसा वही कर सकता है, जिसकी आस्था जीवंत है। अणुव्रत का प्रयत्न आस्था को पुनर्जीवन देने का प्रयत्न है। नैतिक मूल्यों के प्रति क्षीण हो रही आस्था जिस दिन जागेगी, वह युग सही अर्थ में सतयुग होगा। उस युग में जीने वाले लोग भ्रान्त धारणाओं के घेरे को तोड़कर शान्त और संतुलित जीवन जी सकेंगे।
क्या खोया? क्या पाया? : ३३
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