SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५. क्या खोया ? क्या पाया? इस संसार का सबसे श्रेष्ठ प्राणी है मनुष्य । उसकी श्रेष्ठता के मापक बिंदु हैं- विचार, विवेक और आचरण । मनुष्य के पास जैसा मस्तिष्क है, अन्य किसी प्राणी के पास नहीं है । इस दृष्टि से उसकी विचार - प्रक्रिया विलक्षण है । मनुष्य के पास हेय उपादेय का जितना विवेक है, अन्य प्राणियों के पास नहीं है । इस दृष्टि से वह विशिष्ट है । मनुष्य का आचरण जितना उन्नत हो सकता है, अन्य प्राणियों में वैसी संभावना नहीं है । इस दृष्टि से वह पूर्णता के शिखर पर पहुंच सकता है। इस विलक्षणता, विशिष्टता और पूर्णता की संभावना के बावजूद वह अशान्त है, भ्रान्त है और श्रान्त है । - वैज्ञानिक युग में, इतनी उपलब्धियों के युग में उसकी अशान्ति दूर नहीं हुई, भ्रान्तियों का घेरा नहीं टूटा और श्रान्ति से राहत नहीं मिली । क्यों? यह यक्षप्रश्न आज भी अनुत्तरित है । 1 मनुष्य की उपलब्धियां असीम हैं। उनका संख्यांकन होना कठिन है । नया पाने, बटोरने और उसको सुरक्षित रखने की चिन्ता में वह भूल ही गया कि उसने कुछ खोया भी है। उसकी सबसे बड़ी सम्पदा 'आस्था' खो गई। आज मनुष्य की न धर्म में आस्था है, न भगवान् में आस्था है, न सिद्धांतों में आस्था है और न अपने आप में आस्था है । आस्था की डोर से बंधा हुआ आदमी निर्लक्ष्य गति करके भी उत्पथ में नहीं जाता। जहां आस्था की डोर ही टूट जाए या छूट जाए, वहां अशान्ति नहीं तो और क्या होगा ? आस्था की धरती पर भ्रान्तियों का जंगल नहीं उगता । आस्था की छाया में चलने वाले जीवन रथ के अश्व भी कभी नहीं थकते । 1 मनुष्य ने आस्था का स्थान अर्थासक्ति को दे दिया है । अर्थ अनर्थ का मूल है, यह कथन एकांगी है। अर्थ का भी निश्चित अर्थ होता है । उसे क्या खोया ? क्या पाया? : ३१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003144
Book TitleDiye se Diya Jale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy