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___ अच्छे आदमियों की कोई कमी नहीं है, पर उनमें दो कमियां अवश्य हैं। पहली कमी यह है कि वे संगठित नहीं हैं। संगठन में शक्ति होती है। बिखरे हुए तिनकों की संहति से बनी हुई बुहारी पूरे घर का कूड़ा-करकट साफ कर देती है। अनेक लकड़ियों से बनी हुई भारी को कोई मजबूत आदमी भी नहीं तोड़ सकता। अलग-अलग बिखरी हुई लोहे की कड़ियां कुछ भी नहीं कर सकतीं। पर उनके संयोग से बनी हई सांकल हाथी और सिंह को भी बांध देती है। यही स्थिति अच्छे लोगों की है। उनका संगठन सुदृढ़ हो जाये तो वे समाज की धरती पर पनपने वाले असामाजिक तत्त्वों को धराशायी कर सकते हैं। काश ! आदमी अपनी इस क्षमता को समझ कर उसका सम्यक् उपयोग कर पाता। ___ अच्छे लोगों की दूसरी कमी है बुराई या बुरे लोगों के प्रति उपेक्षा का भाव। कोई व्यक्ति या समूह बुराई में प्रवृत्त होता है, उसकी जानकारी पाकर या उसे देखकर भी जो लोग हरकत में नहीं आते, चुपचाप बैठे रहते हैं, उन्हें क्या कहा जाये ? बुराई करना पाप है, इसी प्रकार बुराई को सहन करना भी पाप है। ऐसा पाप आज बहुत लोग कर रहे हैं। वे सोचते होंगे कि बिना प्रयोजन झंझट में क्यों फंसें? ऐसे चिंतन पर मुझे तरस आता है। क्या आदमी का जीवन इतना व्यक्तिगत है? इकोलॉजी के नियम को समझने वाले जानते हैं कि एक आदमी पर कोई आपदा आती है, उससे पूरी मानव जाति प्रभावित होती है। ऐसी स्थिति में कोई भी चिंतनशील आदमी उपेक्षा की संस्कृति का शिकार कैसे हो सकता है? अच्छे आदमियों का संगठन और बुराई के प्रतिकार
की दिशा में उनकी जागरूकता-ये दो घटनाएं घटित हो जाएं तो विश्व के चित्रपट पर अच्छे आदमी उभर कर ऊपर आ सकते हैं।
३० : दीये से दीया जले
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