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१४. तलाश आदमी की
मैं आदमी की तलाश में घूम रहा हूं। मेरे सामने दो प्रकार के चिन्तन हैं-पहला चिंतन कहता है-आदमी की खोज क्यों ? आदमियों का सैलाब उमड़ रहा है। देखते-देखते जनसंख्या कितनी बढ़ गयी। भारत की पैंतीस करोड़ की आबादी पचानवे करोड़ को छूने जा रही है। विश्व की आबादी पांच अरब की संख्या को पीछे छोड़ चुकी है। दूसरा चिन्तन कहता है-आदमियों की संख्या घट रही है। जिस ओर दृष्टि जाती है, सूटबूटधारी मनुष्यों की भीड़ दिखाई देती है, पर उसमें आदमी कितने हैं, कहना कठिन है। दूसरे शब्दों में यह माना जा सकता है कि आदमी तो हैं, पर आदमियत कहीं खो गई है। इन्सान बढ़ रहे हैं, पर इन्सानियत का क्षरण हो गया है या हो रहा है। ऐसी स्थिति में आदमी की तलाश अपना विशेष महत्त्व रखती है। ___आदमी दो प्रकार के हैं-अच्छे और बुरे। संसार में अच्छे लोगों की संख्या अधिक है या बुरे लोगों की? यह एक प्रश्न है। कहने को ऐसा कहा जाता है कि जमाना बहुत बुरा है। आदमी का मन खराब है। वह पापों और अपराधों में आकंठ डूब गया है। उसके आचरण का धरातल खिसक गया है। उसे उचित-अनुचित का विवेक नहीं है। अविवेकी व्यक्ति चारों ओर बुराइयों से घिर जाता है, यह चिन्तन का एक कोण है। इसका दूसरा कोण विधायक है। उसके अनुसार आज भी अच्छे आदमी अधिक हैं, पर दिखाई देने वाले बुरे आदमी हैं। उदाहरण के रूप में एक जनसभा को प्रस्तुत किया जा सकता है। हजारों लोगों की सभा में खड़ा होकर एक व्यक्ति बकवास करने लगे तो सबका ध्यान उसकी ओर चला जाता है। शांति से बैठे रहने वाले हजारों लोगों को देखकर भी अनदेखा कर दिया जाता है। क्योंकि उनकी ओर ध्यान आकर्षित करने वाला कोई कारण नहीं है।
तलाश आदमी की : २६
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