________________
प्रवृत्तियों की परम्परा आगे बढ़ाई जाए या उनका अनुकरण किया जाए। किसी भी प्रवृत्ति का अनुकरण करने से पहले दो क्षण रुककर सोचें कि उसका जीवन पर क्या प्रभाव होगा? फिर चाहे वह प्रवृत्ति तात्कालिक हो अथवा दीर्घकालिक। __वर्तमान युवा पीढ़ी के कुछ लोग नाखून बढ़ाते हैं। प्रारंभ में किसी व्यक्ति ने किसी उद्देश्य से नाखून बढ़ाए होंगे। ऐसा भी हो सकता है कि अपने आपको सबसे अलग दिखाने के लिए यह प्रवृत्ति चली हो। देखादेखी यह प्रवृत्ति बढ़ी। कई युवक-युवतियों के नाखून बढ़ गए। मैंने एक युवक से नाखून बढ़ाने का कारण पूछा। वह सकपका गया। कुछ भी बोल नहीं सका। महिलाएं बढ़े हुए नाखूनों में सौन्दर्य का दर्शन करती होंगी, पर प्राचीन चित्रों की अवधारणा के अनुसार तो इसमें राक्षसी वृत्ति का प्रतीकन किया गया है।
बात केवल नाखून की ही नहीं है, ऊंची एड़ियों की चप्पलें, अलग भांति के कपड़ों की कारी डाले हुए वस्त्र, बाल बनाने की शैली, जन्मदिन के अवसर पर केक काटने की प्रवृत्ति आदि कितने ही काम ऐसे हैं, जो देखादेखी किए जा रहे हैं। ऐसा करने वालों को न तो इन प्रवृत्तियों की उपयोगिता का बोध है और न ही अपनी संस्कृति पर होने वाले हमले की पहचान है। व्यवसायी लोगों के सामने एक लक्ष्य है-अधिक-से-अधिक पैसा बटोरना। वे फैशन की दृष्टि से बाजार में नई-नई चीजें लाते हैं। पर उनका उपयोग करने वाले केवल अनुकरण ही करते रहेंगे तो अपने हिताहित पर विचार कब करेंगे?
बड़े शहरों में एक नई प्रवृत्ति विकसित हो रही है-फलों और सब्जियों को पशु-पक्षियों का आकार देकर सजावट अथवा खाद्य-पदार्थ के रूप में उनका उपयोग करना। माना कि वे पशु-पक्षी कृत्रिम हैं, पर उससे भावी पीढ़ी अव्यक्त रूप में मांसाहार की दिशा में अग्रसर हो सकती है। हमारी अहिंसा-प्रधान संस्कृति पर एक दृष्टि से यह सीधा आक्रमण है। इस प्रकार की और भी बहुत-सी प्रवृत्तियां हो सकती हैं। इन सब समस्याओं का समाधान एक ही है कि अनुकरण के क्षेत्र में विवेक का पूरा जागरण हो। ऐसा होने से ही अवांछनीय प्रवृत्तियों पर रोक संभव है।
२८ : दीये से दीया जले
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org