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१३. अनुकरण की प्रवृत्तिः विवेक की आंख
अनुकरण मनुष्य का सहज वृत्ति ह । सामाजिकता का विकास इसा वृत्त के आधार पर होता है। एक नवजात शिश परिवार में सब लोगों को बोलते हए देखता है, वह बोलना सीख लेता है। उसी बच्चे को वर्षों तक एकान्त में रखा जाए, लोगों के साथ उसके संपर्क सत्रों को तोड़ दिया जाए, तो उसकी वाणी नहीं फूट सकती, वह गूंगा हो जाता है। बोलने की तरह और भी बहुत-सी प्रवृत्तियां हैं, जिनको देखकर ही सीखा जा सकता है। इस अर्थ में अनुकरण का अपना महत्त्व है। आगे बढ़ने के लिए इसकी नितान्त अपेक्षा है। अनुकरण का यह सिलसिला बचपन के साथ समाप्त नहीं होता। वयस्क होने के बाद भी अनेक बातों में अनुकरण चलता है। ___कहा जाता है कि वयस्क व्यक्तियों का सर्वे किया जाए तो अनुकरण की वृत्ति पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में अधिक पाई जाती है। पुरुष अनुकरण नहीं करते, यह बात नहीं है। पर उनके अनुकरण की सीमाएं होती हैं। अनुकरण का सिद्धान्त कई दृष्टियों से अच्छा है, यदि उसके साथ विवेक की पुट रहे। विवेकहीन अनुकरण अन्धानुकरण बन जाता है। इसमें लाभ या विकास की संभावना नहीं रहती। कुछ प्रवृत्तियां तो ऐसी हैं, जिनके अनुकरण से लाभ के स्थान पर नुकसान होता है। ऐसे प्रसंगों पर विवेक की आंख को खुला रखा जाए, यह नितान्त अपेक्षित है। __मैं परंपरा का विरोधी नहीं हूं। अच्छी परंपराएं एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में संक्रान्त होती रहें, यह आवश्यक है। जिस देश या समाज में परम्परा को कांच का बर्तन मानकर एक झटके से तोड़ दिया जाता है, वह देश और समाज अपनी सांस्कृतिक और सामाजिक विरासत को सुरक्षित नहीं रख सकता। किन्तु इसका यह अर्थ नहीं है कि वांछित एवं अवांछित-सभी
अनुकरण की प्रवृत्तिः विवेक की आंख : २७
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