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जीना जीवन की कोई उपलब्धि नहीं है। कर्तव्य की प्रेरणा और दायित्व का बोध मनुष्य को स्वतंत्र रूप से सोचने के लिए विवश करता है। कर्तव्य और दायित्व की चेतना का जागरण ही व्यक्ति को वर्तमान से प्रतिबद्ध करता है। - मनुष्य अपने जीवन को सही ढंग से जीना चाहता है तो वह वर्तमान को पहचाने, क्षण को समझे और उसका उपयोग करे। यह क्षण बहुत कीमती होता है। इसे खो दिया गया तो पश्चात्ताप के अतिरिक्त कुछ भी शेष नहीं रहेगा। प्रश्न हो सकता है कि क्षण का उपयोग कैसे किया जाये? तपस्या ध्यान, स्वाध्याय, सेवा आदि अनेक उपक्रम हैं। पर ये अनुष्ठान सबके वश की बात नहीं है। ऐसी स्थिति में अणुव्रत कहता है कि मनुष्य और कुछ कर सके या नहीं, अपने आपको नैतिक बना ले, प्रामाणिक बना ले, उसका जीवन सफल हो जायेगा।
कुछ लोग कहते हैं, देश में सुरक्षा का संकट है। कुछ लोग मानते हैं कि जातियों और पार्टियों को लेकर होने वाला बिखराव बड़ा संकट है। कुछ लोगों का चिन्तन है कि विकट संकट चरित्र का है। संकट के और भी अनेक रूप हो सकते हैं। उनसे त्राण देने वाला एक ही तत्त्व है। वह तत्त्व है नैतिकता। अणुव्रत नैतिकता की मशाल लेकर चल रहा है। जिस समाज या राष्ट्र के लोग इस मशाल को थाम कर चलेंगे, वहां असुरक्षा, बिखराव और चरित्रहीनता का अंधेरा टिक ही नहीं पायेगा।
Jain
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