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________________ कबीर का एक प्रसिद्ध गीत है - 'पानी में मीन पियासी'। मछली पानी में रहती है और प्यास से तड़पती है। इस बात को सुनकर कबीर ही नहीं, कोई भी हंस सकता है । पर हंसने से क्या होगा ? यह इस संसार की विचित्रता है। जब तक मनुष्य को आत्म-ज्ञान उपलब्ध नहीं होता, वह मथुरा और काशी में भ्रमण करता रहता है । मृग जंगल में भटकता है । क्यों ? कस्तूरी की गंध से आकृष्ट होकर वह चारों ओर दौड़ता है। उसकी दौड़ अज्ञान -जनित है । वह नहीं जानता कि कस्तूरी तो उसकी अपनी ही नाभि में है । हजारों-हजारों ऋषि-मुनि इस संसार में हैं। वे दिन-रात ध्यान करते हैं । परमात्मा का जप करते हैं। ध्यान और जप की साधना के द्वारा वे बाहर-बाहर परमात्मा की खोज करते रहेंगे तो उनका परमात्मा से साक्षात्कार कहां होगा? इस खोज में कितने ही वर्ष बीत जाएं, लक्ष्य पूरा नहीं हो सकता । क्योंकि जिसकी खोज की जा रही है, वह अविनाशी परमपुरुष परमेश्वर व्यक्ति के भीतर ही विराजमान है । मनुष्य सुख की अभिलाषा करता है। सुख कहां है? पदार्थ के भोग में सुख का आभास अवश्य हो सकता है । पर वास्तविक सुख वहां नहीं है । सुख है त्याग में, संयम में। संयम का प्रवाह बह रहा है, सामने बह रहा है, फिर भी आदमी दुःखी है। क्योंकि वह संयम को गौण कर असंयम का सहारा ले रहा है । असंयम में दुःख है, इस सचाई को देखकर भी अनदेखा किया जा रहा है। कीचड़ में फंसा हुआ हाथी देखता है कि सामने सूखी जमीन है, फिर भी वह वहां तक पहुंच नहीं पाता। वह कीचड़ से उठने की चेष्टा करता है, पर उठ नहीं सकता । कीचड़ से बाहर निकले बिना सूखी जमीन तक पहुंचने की कल्पना साकार कैसे हो सकती है? हाथी पशु है । उसमें ज्ञान नहीं है, विवेक नहीं है, इसलिए वह कष्ट भोगता है । मनुष्य ज्ञान - सम्पन्न है । उसकी विवेक चेतना जागृत है । वह जाता है कि सुख का मार्ग क्या है और दुःख का मार्ग क्या है ? यह सब जानता हुआ भी वह दुःख के मार्ग पर आगे बढ़ता है। संयम को प्रायोगिक न बनाकर सैद्धान्तिक रूप में ही उसका गुणगान करता है । ऐसी स्थिति में कबीर की अनुभूति - ' पानी में मीन पियासी' शत-प्रतिशत सत्य प्रमाणित हो रही है। २४ : दीये से दीया जले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003144
Book TitleDiye se Diya Jale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size9 MB
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