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प्राचीनकाल में लोग सोमरस तथा हुक्का पीते थे। आधुनिक युग में इसी बात को आधार बनाकर कहा जाता है कि नशे की संस्कृति आदिम काल से जुड़ी हुई है। गिरते व्यक्ति को थोड़ा-सा धक्का ही काफी है। जिन लोगों का मन दुर्बल है, उनके लिए इतनी-सी बात बहुत बड़ा आलम्बन है। किन्तु ऐसा कहने मात्र से नशे के दुष्परिणामों से बचा नहीं जा सकता। वैयक्तिक, पारिवारिक, सामाजिक और राष्ट्रीय जीवन में घुल रही अनेक विकृतियों के मूल में एक बड़ा कारण नशे की प्रवृत्ति है। इससे आर्थिक, शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्तर पर मनुष्य का जितना अहित होता है, उसे आंकड़ों में प्रस्तुति दी जाए तो उसकी आंखें खुल सकती हैं।
क्या मद्यपान को रोका जा सकता है? क्या धूम्रपान को नियंत्रित किया जा सकता है? इस प्रकार की संदिग्ध मनोवृत्ति से कभी सफलता नहीं मिलती। सफलता का पहला सूत्र है दृढ़संकल्प और दूसरा सूत्र है संकल्प की पूर्ति के लिए कारगर उपायों की खोज। कुछ लोग मादक व नशीले पदार्थों के उत्पादन
और सेवन पर रोक लगाने की मांग करते हैं। कुछ लोग चाहते हैं कि पाठ्यक्रम में ऐसे पाठ जोड़े जाएं, जो मादक एवं नशीले पदार्थों के सेवन से होने वाले दुष्परिणामों को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करते हों। कुछ लोग इलेक्ट्रॉनिक्स प्रचार माध्यमों से वातावरण या मानसिकता बदलने की बात करते हैं। कुछ लोगों का चिन्तन है कि तम्बाकू की खेती और बीड़ी उद्योग कामगारों के सामने नया विकल्प प्रस्तुत किया जाए। मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि चिन्तन के कोण अलग-अलग हैं, पर लक्ष्य सबका एक है। ऐसी स्थिति में क्या यह संभव हो सकता है कि उक्त विचारधारा वाले सभी व्यक्ति और संगठन मिलकर एकसूत्रीय कार्यक्रम बनाएं और 'विश्व स्वास्थ्य संगठन' को भी इसके लिए सहमत किया जाए। यदि ऐसा हो सका तो मेरा विश्वास है कि नशे की संस्कृति के जमते हुए पांवों को उखाड़ने में अधिक सुविधा रहेगी।
नशे की संस्कृति : १५
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