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७. नशे की संस्कृति
महानगरों, नगरों, कस्बों, गांवों और देहातों में समान रूप से प्रभावी बनने वाली संस्कृति की पहचान 'नशे की संस्कृति' के रूप में हो रही है। इस संस्कृति के सूत्रकार कौन हैं? इसका प्रथम प्रयोग कब हुआ? इसको विस्तार किसने दिया? इसके परिणामों के बारे में सबसे पहले कब किसने सोचा? और इसे नियंत्रित कैसे किया जा सकता है? इत्यादि कुछ ऐसे प्रश्न हैं, जो समाधान की प्रतीक्षा में उद्ग्रीव होकर खड़े हैं। इस सन्दर्भ में गंभीर शोध और व्यापक बहस की अपेक्षा है। अन्यथा यह नशे की नागिन अपने शीघ्र प्रभावी जहर से मानव जाति के अस्तित्व के लिए संकट पैदा कर सकती
नशे की आदत कैसे लगती है? इस प्रश्न पर विचारकों के अलग-अलग अभिमत हैं। कुछ व्यक्ति चिन्ता, थकान और परेशानी से छुटकारा पाने की चाह से नशे के क्षेत्र में प्रवेश करते हैं। कुछ व्यक्ति संघर्षों से जूझने के लिए नशा करते हैं। कुछ व्यक्ति चुस्त, दुरुस्त और आधुनिक कहलाने के लोभ में नशे के चंगुल में फंसते हैं। कुछ व्यक्ति ऐसे भी हैं, जो दूसरे लोगों को. धूम्रपान या मदिरापान करते हुए देखते हैं तो उनके मन में एक उत्सुकता जागती है और उनके कदम बहक जाते हैं। कुछ व्यावसायिक ऐसी आकर्षक वस्तुओं का निर्माण करते हैं कि उपभोक्ता उनका प्रयोग किए बिना रह नहीं सकता। __कुछ व्यक्ति साथियों के लिहाज या दबाव के कारण नशे के शिकार होते हैं और भी अनेक कारण हो सकते हैं। कारण कुछ भी हो, एक बार नशे की लत लग जाने के बाद मनुष्य विवश हो जाता है। फिर तो वह प्रयत्न करने पर भी उससे मुक्त होने में कठिनाई का अनुभव करता है।
१४ : दीये से दीया जले
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