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शत्रुता को बढ़ावा मिलता है। शासन का काम है जनता की सुरक्षा, जनहित की सुरक्षा और राष्ट्र का विकास। इस काम में सत्तारूढ़ पक्ष की जितनी जिम्मेदारी है, उतनी ही जिम्मेदारी प्रतिपक्ष की है। सत्तारूढ़ दल की कमजोरी पर प्रतिपक्ष को अंगुली उठाने का अधिकार है। किंतु पक्ष-विपक्ष में जनहित की विस्मृति और अपने एवं अपनी पार्टी के हितों की स्मृति रहती है ।' आडवाणीजी बोले- 'प्रतिपक्ष शब्द अच्छा है ।'
वर्तमान स्थिति की समीक्षा की जाए तो ऐसा प्रतीत होता है कि आज प्रतिपक्ष के सिंहासन पर विपक्ष बैठा हुआ है । संसद के गतिरोध का मूल कारण यही है । बात तो इतनी सी है कि प्रतिभूति घोटाले के संबंध में संसदीय समिति की जो रिपोर्ट संसद में रखी गई, उस पर पक्ष- प्रतिपक्ष दोनों अड़े हुए हैं । प्रतिपक्ष की मांग है कि रिपोर्ट वापस लो, उसके अनुसार 'कार्यवाही करने के बाद उसे सदन के पटल पर प्रस्तुत करो । सरकार उस रिपोर्ट को वापस लेने के लिए तैयार नहीं है। दोनों के अपने-अपने राजनीतिक हित हैं । प्रतिपक्ष ने संसद का बहिष्कार कर दिया और सरकार संसद चलाने के लिए संकल्पित है | पक्ष प्रतिपक्ष दोनों की उपस्थिति बिना संसद कैसे चलेगी? दोनों की खींचातानी में राष्ट्र का कितना अहित हो रहा है, इस ओर किसी का ध्यान नहीं है।
हमें न सरकार से कुछ लेना है और न प्रतिपक्ष को कुछ देना है । राष्ट्रीय चरित्र निर्माण के लिए हमने यह यात्रा की । चरित्र-निर्माण का अभियान चल रहा है। ऐसे समय में अपना दायित्व समझकर हमने एक प्रयत्न शुरू किया है। सरकार और प्रतिपक्ष- सबको एक विशेष संदेश दिया है। इस आशा के साथ संदेश दिया है कि वे पूर्वाग्रहों और प्रतिष्ठा के प्रश्न को एक ओर रखकर गतिरोध को दूर करें। ऐसा नहीं हुआ तो, 'घर में हानि और लोक में हंसी' वाली कहावत चरितार्थ होगी। जो परिस्थिति से समझौता करना जानता है, वह सफल होता है। समझौते की भाषा में नहीं सोचने वाला पिछड़ जाता है। विफल हो जाता है। मुझे विश्वास है कि गतिरोध दूर होगा और भारतीय संसद की गरिमा सुरक्षित रहेगी ।
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लोकतन्त्र का मन्दिर : १३
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