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________________ ६. लोकतन्त्र का मन्दिर लोकतन्त्र का मन्दिर सबके लिए खुला है। वहां कोई भी जा सकता है, पूजा कर सकता है और स्वयं को लोकतंत्र का पुजारी मान सकता है । पुजारी मानने और बनने में जो अन्तर है, वह जब तक नहीं मिटेगा, लोकतंत्र की सही पूजा नहीं हो सकेगी। पूजा की गलत प्रक्रिया उन सबके लिए कष्टकर हो जाती है, जो लोकतंत्र के भक्त हैं। वे ऐसे पुजारियों को बाहर ही रोकना चाहते हैं, किंतु उनकी घुसपैठ रुकती नहीं है। जिनको मुख्य द्वार से प्रवेश नहीं मिलता है, वे पीछे से घुस जाते हैं और लोकतंत्र के मन्दिर को अपवित्र बनाने से बाज नहीं आते । I यह राजनीति है। इसमें जनहित गौण रहता है और वोटहित प्रमुख बन जाता है । कैसा विचित्र खेल है । इस खेल में सम्मिलित होने वाले खिलाड़ी जनता के वोट बटोरते हैं । वे जनता की समस्या का समाधान करेंगे और सब कुछ गौण करके जनहित के लिए काम करेंगे, इस आश्वासन पर उन्हें वोट मिलते हैं । सब कुछ गौण होता है, उसमें जनता का हित भी गौण हो जाता है । इसका ताजा उदाहरण है संसद का वर्तमान गतिरोध । जहां संसद है, वहां पार्टियां होती हैं । पार्टियां हैं तो उनमें पक्ष और प्रतिपक्ष भी होते हैं अन्यथा संसद का स्वरूप नहीं बन सकता । किंतु जहां पक्ष-प्रतिपक्ष के स्थान पर पक्ष-विपक्ष हो जाते हैं, वहां कोई भी काम सद्भावना से नहीं हो सकता । आपसी सद्भावना का लोप अनेक समस्याओं को उभरने का मौका देता है । गत वर्ष हम लाडनूं थे। भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी वहां आए । पक्ष-विपक्ष की चर्चा चली। हमने उनसे कहा- ' विपक्ष शब्द ही गलत है 1 विपक्ष का अर्थ होता है विरोधी पक्ष । विरोधी दृष्टिकोण से वैमनस्य और १२ : दीये से दीया जले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003144
Book TitleDiye se Diya Jale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size9 MB
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