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________________ गौण किया जा रहा है। नशे की संस्कृति युवापीढ़ी को गुमराह बना रही है। चुनाव की धांधली ने लोकतंत्र की पवित्रता के आगे प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया है। पर्यावरण का संकट गहराता जा रहा है। अणुव्रत इस प्रकार की सब समस्याओं को समाहित करने की दिशा प्रशस्त कर सकता है, बशर्ते कि मनुष्य गहरी आस्था के साथ व्रतों का अनुशीलन करे। अणुव्रत का दर्शन मुख्यतः संयम का दर्शन है। संग्रह और व्यक्तिगत भोग की सीमा का सिद्धान्त आर्थिक दृष्टि से पनपने वाली बुराइयों की जड़ पर कुठाराघात करता है। पृथ्वी, पानी, वनस्पति आदि का संयम पर्यावरण को प्रदूषित होने से रोक सकता है। इस बात को सिद्धान्ततः स्वीकार करने पर भी जीवन-व्यवहार में संयम का यथेष्ट अभ्यास नहीं हो पा रहा है। यह मानवीय दुर्बलता है कि मनुष्य जिस जीवन-शैली को समाधानकारक और उन्नत मान रहा है, उसे भी स्वीकार नहीं कर पा रहा है। इसका मूलभूत कारण है प्रतिरोधात्मक शक्ति अथवा प्रतिस्रोत में बहने की क्षमता का अभाव। शिक्षा में अणुव्रत दर्शन का प्रवेश एक उपाय है संस्कार-परिर्वतन की दिशा में नई संभावनाओं के द्वार खोलने का। विद्यार्थी जीवन में अणुव्रत की शिक्षा का अभ्यास हो जाए तो संयम की साधना दुष्कर नहीं रहती। इक्कीसवीं सदी में प्रवेश करने का समय सामने है। सात वर्षों का समय बहुत लम्बा समय नहीं होता। उस समय तक अणुव्रत जैसे व्यापक जीवन-दर्शन को आत्मसात् किया जा सके तो अगली सदी का प्रवेश पूरी भव्यता और दिव्यता के साथ हो सकेगा। मेरा यह निश्चित विश्वास है कि अणुव्रत-दर्शन आगामी सदी को उजालने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकेगा। प्रासंगिकता संयम की : ६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003144
Book TitleDiye se Diya Jale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size9 MB
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