SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 198
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इतने समय तक आपने जिन कामों में अपनी शक्ति लगाई, क्या वह व्यर्थ नहीं जाएगी? जब आप आचार्य पद से मुक्त हो ही चुके हैं तो क्या यह उचित नहीं होता कि आप राजधानी में ही रहकर इन कार्यों को सतत गतिमान रख पाते? समाधान-हमारे इस बार के दिल्ली प्रवास में दो कार्यों पर ध्यान केंद्रित रहा-लोकतंत्र-शुद्धि और शिक्षा में परिवर्तन। दोनों क्षेत्रों में सोद्देश्य काम किया गया। उसके परिणाम भी सामने आए। लोकतंत्र-शुद्धि कार्यक्रम को गतिशील बनाए रखने के लिए 'अणुव्रत संसदीय मंच' की स्थापना एक आशा जगाती है। वैसे हमारे पास कोई जादू का डंडा तो है नहीं, जो चुटकी बजाते ही काम पूरा करवा दे। कार्य का प्रारंभ एक बात है, उसे निष्पत्ति तक पहुंचने में समय लगता है। शिक्षा के क्षेत्र में 'जीवन-विज्ञान' के बारे में जिज्ञासा ही नहीं आस्था जाग रही है। सरकारी स्तर पर और व्यक्तिगत स्तर पर भी शिक्षाधिकारियों ने यह निर्णय लिया है कि अध्यापकों को प्रशिक्षित कर जीवन-विज्ञान पाठ्यक्रम के अनुसार अध्ययन कराया जाएगा। इस दृष्टि से अध्यापकों के अनेक शिविर आयोजित हुए और कार्य आगे बढ़ने की संभावना बढ़ी है। कार्य को अधूरा छोड़कर जाने की बात ध्यान देने योग्य अवश्य है, पर कोई भी काम कभी पूरा होता है क्या? भारतीय संस्कृति के आदर्श पुरुषों में राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध, गांधी आदि न जाने कितने विशिष्ट पुरुष हो गए। अपने-अपने युग में सबने काम किया। क्या उनके बाद उस काम की अपेक्षा नहीं रही? जब तक संसार है, काम करने वाले आते रहेंगे, जाते रहेंगे और काम होता रहेगा। आज तक कोई भी महापुरुष ऐसे नहीं हुए , जिन्होंने करणीय कामों को निःशेष कर दिया हो। फिर हमारी क्या औकात है कि हम प्रारंभ किए गए हर कार्य को पूरा कर ही देंगे। फिर भी हमारा लक्ष्य है कि हम देश की राजधानी में रहें या राजस्थान में रहें, काम करते रहेंगे। इस सन्दर्भ में आचार्य हेमचंद्र की विचार-सरणी हमारा मार्गदर्शन कर रही है। उन्होंने लिखा है १८० : दीये से दीया जले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003144
Book TitleDiye se Diya Jale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy