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________________ बनाता है 1 अणुव्रत की सप्तसूत्री साधना का पहला संकल्प है- मैं प्रेक्षाध्यान का अभ्यास करूंगा, आत्मनिरीक्षण करूंगा। इस दृष्टि से अणुव्रत और प्रेक्षाध्यान एक-दूसरे के पूरक हैं। जीवन में अणुव्रत नहीं है तो प्रेक्षाध्यान की सार्थक निष्पत्ति नहीं आ सकती । इसी प्रकार अणुव्रती व्यक्ति प्रेक्षाध्यान का अभ्यास नहीं करेगा तो संकल्पशक्ति के विकास में बाधा आ सकती है । प्रेक्षाध्यान मानसिक कंसनट्रेशन का उपाय हैं। मन की चंचलता संकल्पशक्ति को शिथिल बनाती है । इसलिए मैं प्रेक्षाध्यान को अणुव्रती के लिए अत्यंत आवश्यक मानता हूं । 'जीवन-विज्ञान' अणुव्रत और प्रेक्षाध्यान से भिन्न कोई नया कार्यक्रम नहीं है । यह शिक्षा के क्षेत्र में एक प्रयोग है । भारतीय शिक्षा पद्धति की एक बड़ी कमी यह है कि उसमें मानवीय मूल्यों, चरित्र या जीवन जीने की कला पर अधिक ध्यान नहीं दिया गया। इस कारण शिक्षा एकांगी हो गई। शिक्षा पूरी करने के बाद कोई व्यक्ति अलग से जीवन मूल्यों या चरित्र का प्रशिक्षण ले सके, यह संभव नहीं लगता । विद्यार्थी प्रारंभ से ही समग्रता के साथ पढ़े । थ्योरिटिकलि और प्रैक्टिकल जीवन जीने की कला सीखे, यही जीवन-विज्ञान है । मैं इन तीनों को त्रिवेणी के रूप में देखता हूं। गंगा, यमुना और सरस्वती की तरह अणुव्रत, प्रेक्षाध्यान और जीवन - विज्ञान की त्रिवेणी में अवगाहन करने वाले लोग अच्छा जीवन जीना सीख लेते हैं । अहिंसा का प्रशिक्षण हमारा एक कार्यक्रम है। यह भी अणुव्रत की भावना के अनुरूप है। अणुव्रत के प्रथम पांच नियमों का संबंध अहिंसा के साथ है। प्रशिक्षण के अभाव में अहिंसा केवल वाणी का विषय बनकर रह जाती है । इसलिए उसका प्रशिक्षण अहिंसा को व्यावहारिक बनाने का उपक्रम है 1 जिज्ञासा- आपने इस वर्ष दिल्ली में लगभग एक वर्ष का प्रवास किया। इस अवधि में अनेक रचनात्मक कार्यों की शुरुआत हुई । लोकतंत्रशुद्धि एवं शिक्षा पद्धति में परिवर्तन के कार्यक्रमों को लेकर उल्लेखनीय कार्य हुए। अब आपने राजस्थान जाने की घोषणा कर दी। इस समय राजस्थान जाना वर्ष भर में प्रारंभ किए गए कार्यों को अधूरा छोड़ना नहीं है क्या ? जिज्ञासा : समाधान : १७६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003144
Book TitleDiye se Diya Jale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size9 MB
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