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व्यापक प्रयत्न कहां होता है ? कुछ व्यक्ति थोड़ा-बहुत प्रयत्न करते हैं । पर इसका समुचित मूल्यांकन होता, इसके प्रचार-प्रसार में जैन लोग शक्ति लगाते तो यह एक सार्वजनिक पर्व का रूप ले लेता । एक पर्युषण पर्व का क्या, अन्य किसी विषय में भी अपेक्षित प्रचार-प्रसार कहां होता है ? जैन लोग इस अपेक्षा को समझे नहीं हैं अथवा उनका ध्यान इधर गया नहीं है ।
पयुषण पर्व का आध्यात्मिक मूल्य स्पष्ट है । इसका सामाजिक और पारिवारिक मूल्य भी कम नहीं है । समाज और परिवार में सौहार्द की स्थापना में इसकी मूल्यवान् भूमिका हो सकती है । इस दृष्टि से इसको सौहार्द या मैत्री का पर्व कहा जा सकता है । यदि बड़े पैमाने पर सामाजिक एवं पारिवारिक वातावरण में वार्षिक मैत्री पर्व की समायोजना हो तो भीतर-ही-भीतर घुलती अनेक गांठें खुल सकती हैं। आपसी वैर-विरोध का शमन हो सकता है । अदालत का दरवाजा खटखटाने से छुट्टी हो सकती है । घर की दहलीज के भीतर पांव रख परिवार में जहर घोलने वाली अन्य अनेक समस्याओं का समाधान खोजा जा सकता है 1
मैत्री का यह पर्व विश्व के इतिहास का एक महत्त्वपूर्ण दस्तावेज है ! इसे किसी भी सम्प्रदाय की सीमा में आबद्ध करने का कोई औचित्य नहीं है । यह शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व का पर्व है । सौहार्द का पर्व है । सहिष्णुता का पर्व है। जीवन के प्रति जागरूक बनाने वाला पर्व है । सामूहिकता का पर्व है। इसमें सबकी संभागिता हो, यह आवश्यक है ।
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जिज्ञासा - हजारों वर्षों से चले आ रहे इस महापर्व से भारत वर्ष का लोक जीवन कहां तक प्रभावित हुआ है ? क्या इस दिन के उपलक्ष्य में देश भर में अहिंसा दर्शन के सक्रिय प्रशिक्षण की कोई व्यवस्थित रूपरेखा बनाई जा सकती है ?
समाधान- इस पर्व का जितना प्रसार हुआ है, उतनी सीमा में जन जीवन प्रभावित भी हुआ है। बहुत प्रसार भी नहीं हुआ, इसलिए व्यापक प्रभाव की बात भी कैसे सोची जा सकती है? विगत कुछ वर्षों से संवत्सरी पर्व के दिन को अहिंसा दिवस के रूप में मनाने की बात चर्चा में है । भारत सरकार के सामने भी यह प्रस्ताव रखा गया कि संवत्सरी पर्व को अहिंसा दिवस के रूप में घोषित किया जाये । किन्तु जब तक सब जैन एक दिन को स्वीकार नहीं
१६२ : दीये से दीया जले
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