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________________ संवत्सरी मनाने वाले भी स्वीकार करते हैं कि आगम की दृष्टि से पंचमी का दिन ही है । पर कालकाचार्य ने चतुर्थी को संवत्सरी की, इसलिए हम भी उसी को मानते हैं । कालकाचार्य का समय विक्रम पूर्व प्रथम शताब्दी है । जिज्ञासा - अनेकान्त के उपासक सभी जैनाचार्य तीव्र प्रयत्न के बावजूद सांवत्सरिक एकता के सम्बन्ध में अब तक एक मत क्यों नहीं हो सके ? क्या निकट भविष्य में उनके एकमत होने की कोई संभावना है ? समाधान - अनेकान्त दर्शन है, एक सिद्धान्त है। उसका व्यवहार में प्रयोग हो रहा है, ऐसा नहीं माना जा सकता । वास्तविकता तो यह है कि अधिकांश जैन अनेकान्त को समझते ही नहीं हैं । जो थोड़ा-बहुत जानते हैं, उन पर भी परम्परा और साम्प्रदायिकता की छाया रहती है। जो प्रश्न उपस्थित किया गया है, अनेकान्तवादियों के सामने बहुत बड़ा प्रश्न है । आज के वैज्ञानिक और बौद्धिक युग में इसे उत्तरित नहीं किया गया तो प्रश्नचिह्न और बड़ा हो जायेगा । 1 इस सन्दर्भ में हमारे मन में एक कल्पना है । उसके अनुसार जैनशासन के प्रभावशाली आचार्यों, मुनियों, श्रावकों और विद्वानों की एक संगीति आवश्यक है। उसके लिए विलम्ब न हो । निकट समय में उसकी सम्यक् आयोजना हो। हमें इसमें उक्त समस्या का समाधान दिखाई दे रहा है । सब लोग एक साथ बैठकर चिन्तन करें, समीक्षा करें और पर्यालोचन करें तो अवश्य ही एकता का पथ प्रशस्त हो सकता है । केवल 'संवत्सरी' का ही नहीं, और भी अनेक प्रश्नों का समाधान हो सकता है । संगीति कब हो? कहां हो? और कैसे हो? इसका निर्धारण सम्प्रदायों के कुछ प्रतिनिधि मिलकर करें। हमने इस दिशा में पहल की है। कुछ विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों और मुनिवरों से इस विषय में चर्चा भी प्रारम्भ की है। यह चर्चा आगे बढे, सामूहिक रूप ले और इसके वांछित परिणाम सामने आएं, यह आवश्यक है। जिज्ञासा - क्या जैन मतावलम्बी अपने इस महापर्व की आराधना में पास-पड़ोस के लोगों को सम्मिलित करने का प्रयत्न करते हैं? समाधान - पर्युषण पर्व जितना महान् है, आध्यात्मिक, सामाजिक एवं पारिवारिक दृष्टि से जितना उपयोगी है, उस अनुपात में उसे मनाने का जिज्ञासा : समाधान : १६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003144
Book TitleDiye se Diya Jale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size9 MB
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