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________________ कर लेते, यह बात आगे नहीं बढ़ सकती। यदि सब जैनों को एक दिन मान्य हो जाए तो अहिंसा दिवस की कल्पना साकार हो सकती है। उसके साथ अहिंसा के प्रशिक्षण की बात भी जोड़ी जा सकती है, ऐसा स्पष्टं आभासित हो रहा है। अहिंसा युग की मांग है। आज की अनेक समस्याओं का समाधान है। अहिंसा दिवस के परिप्रेक्ष्य में अहिंसा प्रशिक्षण की योजना को बहुत व्यापक रूप दिया जा सकता है। अब भी इस विषय में कोई ठोस काम नहीं हुआ तो समय हाथ से निकल जाएगा। विश्व की संस्कृति के लिए मूल्यवान् हमारा यह महापर्व कब तक सर्व सहमति की प्रतीक्षा करता रहेगा? जिज्ञासा-भगवान् महावीर के दर्शन में विश्व दर्शन बनने की क्षमता है, यह बात कई लोगों के मुंह से सुनी है। फिर भी ऐसा लगता नहीं कि वह विश्व दर्शन बनने जा रहा है। इस सन्दर्भ में आपका क्या चिन्तन है? समाधान-जैन दर्शन में विश्व दर्शन बनने की क्षमता है, यह तथ्य निर्विवाद है। ऐसा व्यापक, उदार और वैज्ञानिक दर्शन दुर्लभतम होता है। कुछ बातें व्यापक होती हैं, पर वैज्ञानिक नहीं होतीं। कहीं वैज्ञानिकता होती है, किन्त व्यापकता नहीं होती। जैन दर्शन में एक साथ सारी बातें मिल जाती हैं। प्रश्न है वह विश्व दर्शन क्यों नहीं बना? क्यों नहीं बन रहा? ऐसी जिज्ञासा अस्वाभाविक नहीं है, क्योंकि जैन धर्म या दर्शन के मंच से ऐसा कुछ भी नहीं हो पाया है। किन्तु जैन दर्शन के मौलिक सिद्धांतों -सापेक्षता, समन्वय, सहअस्तित्व आदि की गूंज पूरे विश्व में है। विश्व के लोग जैन नहीं बने, यह सचाई है। फिर भी जहां कहीं सापेक्षता, समन्वय आदि जीवनशैली के साथ जुड़ेंगे, वहां महावीर का दर्शन स्वतः फलित हो जाएगा। इस सन्दर्भ में जोधुपर रोटरी क्लब का एक प्रसंग उद्धृत करना चाहता हूं। वहां एक प्रबुद्ध व्यक्ति ने प्रश्न पूछा-'जैन लोगों की संख्या इतनी कम क्यों है? मैंने कहा-'संख्या की दृष्टि से जितने आंकड़े सामने आये हैं, वे सही नहीं हैं। क्योंकि इन आंकड़ों में उन सब लोगों को सम्मिलित किया गया है, जो जैन परिवार में जनमे हैं। जैनों में बहुत लोग ऐसे हो सकते हैं, जिनको न तो जैन सिद्धांतों की जानकारी है और न वे उन सिद्धांतों का पालन करते हैं। ऐसे लोगों को गणना में सम्मिलित न करें तो जैनों की जिज्ञासा : समाधान : १६३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003144
Book TitleDiye se Diya Jale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size9 MB
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